उर्दू साहित्य में स्त्री विमर्श मर्दवादी समाज के शोषण से कराहने के दौर से कहीं आगे निकल कर जहां जुल्म के खिलाफ बगावत का बिगुल फूकने तक पहुंच चुका है, वहीं मुख्यधारा के सियासी विमर्शों पर अपना पक्ष मजबूती से रखने लगा है.
बिहार उर्दू अकादमी द्वारा आयोजित उर्दू में निसाई अदब( महिला साहित्यकारों की भूमिका) विषय पर चर्चा के दूसरे दिन, महिला साहित्यकारों ने अपनी बात रखी. उर्दू साहित्य में ख्वातीन अदीबाओं की धमक इतनी मजबूती से आगे बढ़ रही है कि इसकी कल्पना गैर उर्दू दुनिया को नहीं है. रविवार को अनेक सत्रों में शीर्ष महिला साहित्यकारों से ले कर नयी लेखिकाओं और शायराओं ने मौजूदा साहित्य में अपनी भूमिका की चर्चा की. जकिया मशहदी, बानो सरताज, सरवत खान, तब्बसुम फातिमा, तसनीम कौसर जैसी दर्जन भर साहित्यकारों ने अपने मकाले, अफसाने पढ़े.
तसनीम कौसर ने दुनिया भर में मुसलमानों के खिलाफ बढ़ते जुल्म का धारदार चित्रण किया गया है. अपने नाविल में तसनीम ने रोहिंग्या मुसलमानों से ले कर, इराक और दूसरे मुल्कों में मुसलमानों के खिलाफ रची जा रही साजिशों का उल्लेख किया है. इसी तरह कहकशां तब्बसुम ने औरतों के ऊपर होने वाले जुल्म, खास तौर पर मुसलमानों को निशाना बनाने वाले साहित्य की चर्चा की.
तब्बसुम फातिमा ने मुस्लिम समाज के अंदर के मसायल पर आधारित अपने अफसाने में मीडिा की चीखती आवाजों और मुस्लिम विरोधी मानसिकता से की जा रही पत्रकारिता को निशाना बनाया है. तब्बसुम के अफसाने में जहां तलाक जैसे मुद्दे पर औरत की बेबसी का जिक्र किया गया है वहीं, ऐसे संवदेनशील मुद्दे को मीडिया द्वारा लपक कर इसमें नफरत की मिर्ची लगाने का न सिर्फ जिक्र है बल्कि टीवी बहसों में अपना पक्ष मजबूती से रख कर टीवी एंकरों की बोलती बंद कर देने का साहस भी दिखता है.
उर्दू अकादमी ने निसाई अदब पर तीन दिनों की परिचर्चा का आयोजन किया है. यह आयोजन सोमवार को भी जारी रहेगा. इस परिचर्चा में देश भर की 43 महिला उर्दू साहित्यकारों को आमंत्रित किया गया है.