जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) में देश विरोधी नारे लगने के मामले पर विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से गठित जांच पैनल के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया गया है और इसमें कुछ और सदस्यों को शामिल करने की मांग की जा रही है।
छात्र परिषद के सदस्यों ने आठ छात्रों को निलंबित किए जाने के विरोध में जांच पैनल के समक्ष पेश होने और जांच प्रक्रिया में शामिल होने से इन्कार कर दिया है, तो दूसरी ओर शिक्षकों ने पैनल में और सदस्यों को लिए जाने की मांग उठाई है। जांच पैनल के समक्ष पेशी के लिए बुलाए गए छात्रों का कहना है कि उनकी नजर में जांच पैनल का स्वरुप अलोकतांत्रिक है। इसके साथ ही प्राथमिक जांच के आधार पर शिक्षण सत्र से कुछ छात्रों के निलंबन की कार्रवाई भी गलत है।
जेएनयू शिक्षक संघ के अनुसार एक ओर छात्र अपने नेता कन्हैया कुमार की रिहाई की मांग को लेकर कक्षाओं का बहिष्कार कर रहे हैं तो दूसरी और शिक्षक कक्षाओं में व्यवधान के मसले को लेकर दो गुटों में बंट गए हैं। जांच पैनल की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि जिस गंभीर मामले की जांच के लिए इसका गठन किया गया है उसमें केवल तीन सदस्यों का होना गले नहीं उतर रहा। शिक्षक चाहते हैं कि इसे निष्पक्ष बनाने के लिए जेएनयू के बाहर के भी कुछ लोगों को इसमें शामिल किया जाए। शिक्षक संघ का कहना है कि जेएनयू छात्रावास समिति,समान अवसर प्रकोष्ठ और महिलाओं के प्रति संवेदनशील व्यवहार की वकालत करने वाले पैनल के सदस्य भी जांच पैनल में लिए जाने चाहिए।