पटना जिले के फुलवारी प्रखंड की चिलबिली पंचायत के बृजनंदन रविदास। स्वतंत्रता दिवस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष उन्होंने झंडा फहराया था। राजकीय समारोह का आयोजन चिलबिली गांव के कुर्मी टोले में किया गया था, जिसमें महादलित टोले के बृजनंदन रविदास ने झंडा फहराया था। सीएम के सामने अपने संबोधन में शराबबंदी की तारीफ की थी और पंचायत के विकास की मांग रखी थी। 15 अगस्त को प्रशासन के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हो गए थे बृजनंदन। लेकिन समारोह स्थल से सीएम का काफिला गुजरने के बाद फिर वे सामान्य आदमी हो गए और उनकी प्राथमिकता अपने लिए इंदिरा आवास मिल जाने तक सीमित हो गयी।
वीरेंद्र यादव
रोटी के संघर्ष के आगे ऐसी खुशियां कितने दिन सहेज पाएंगे हम
झंडोत्तोलन के एक सप्ताह बाद बृजनंदन रविदास के घर पर उनसे मुलाकात हुई। पुराने बने इंदिरा आवास में परिवार के साथ खाना खा रहे थे। थोड़ी देर इंतजार के बाद बाहर निकले। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। हमने पूछा- मुख्यमंत्री के सामने झंडा फहराने और साथ में बैठने का अनुभव कैसा रहा। उनका जवाब था- बहुत बढि़या लगा। मन में खुशी हो रही थी। लेकिन समारोह के बाद सबकुछ पुराना ही रह गया। उम्मीद थी कुछ आर्थिक मदद मिलेगी, लेकिन इंतजार करते रह गए। धोती-कुर्ता, गंजी, टोपी और जूता-पैताबा बीडीओ साहब खरीदवाए थे। कपड़ा बढि़या था। जूता अपनी पसंद से खरीदे थे। वे अपनी खुशी को रोक नहीं पा रहे थे और करीब तीन दिनों तक मिले वीआईपी ट्रीटमेंट को भूल नहीं पा रहे थे।
तीन दिनों तक रही सुरक्षा
बृजनंदन रविदास ने कहा कि तीन दिन पहले से इलाके की सुरक्षा बढ़ा दी गयी थी। हमारे पूरे परिवार की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जा रहा था। पुलिस व प्रशासन के कई वरीय अधिकारी आए। कई तरह के सवाल भी पूछ रहे थे। एक दिन पहले मंच पर बैठने से लेकर बोलने तक का अभ्यास कराया गया था। पहले पंचायत के संबंध में हमारी मांग की जानकारी ली गयी और उसी आधार पर भाषण लिखकर दिया गया। भाषण बड़े साहब भेजवाए थे। हम सातवां पास हैं। इसलिए पढ़ने में भी कोई परेशानी नहीं हुई। मंच पर सीएम के साथ बैठने के बाद कोई खास बात नहीं हुई। कई स्तर पर सुरक्षा जांच भी हुई।
कोई पूछने नहीं आया
उन्होंने बडे ही उदास भाव से आगे की घटना का विवरण दिया। मुख्यमंत्री के जाने के साथ सबकुछ चला गया। मुख्यमंत्री आगे-आगे गए और फिर साहब लोग भी चले गए। कोई पूछने भी नहीं आया। तीन दिनों तक सुरक्षा घेरे में रहने वाला गांव अचानक विरान हो गया। उन्होंने कहा कि हम बीडीओ साहब से मिलना चाहते हैं और उनसे मिलकर कुछ बात करेंगे। उनसे इंदिरा आवास की मांग भी करेंगे,ताकि बाल-बच्चों के रहने के लिए भी घर बना सकें। उन्होंने कहा कि चिलबिली के दलित टोले में झंडा फहराने की जगह नहीं थी, इसलिए कुर्मी टोला में झंडोत्तोलन समारोह का आयोजन किया गया।
तीन नौकरी छोड़ चुके हैं रविदास
चिलबिली गांव मुख्यमंत्री के आगमन को लेकर अचानक चर्चा में आ गया था, लेकिन समारोह के समाप्त होते ही गुमनाम हो गया। गुमनाम बृजनंदन रविदास भी हो गए, जिन्होंने सीएम के समक्ष झंडा फहराया था। उन्होंने कहा कि हम तीन नौकरी छोड़ चुके थे। बाबूजी का एकलौता पुत्र थे। उन्होंने नौकरी नहीं करने दी। इसलिए गरीबी में ही जीने को अभिशप्त रह गए। दस कट्ठा में खेती करते हैं तो चावल-गेहूं की व्यवस्था हो जाती है। शरीर अब भारी काम करने की इजाजत नहीं दे रहा है। एक बेटा बीमार है, दूसरा मेहनत-मजदूरी करता है। किसी तरह परिवार की गाड़ी चल रही है।
हमने कहा – आप मुख्यमंत्री के समक्ष झंडा फहराए, भाषण दिए, बगल में बैठे, यह सौभाग्य नहीं है। उन्होंने कहा कि यह खुशी और गर्व की बात है, लेकिन रोटी के संघर्ष के आगे ऐसी खुशियां कितने दिन सहेज पाएंगे हम।