तबके स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे के डॉक्टरों का हाथ काटने वाले बयान के ढ़ाई साल बाद सीएम जीतन राम मांझी ने भी काम में रुकावट बनने वाले डाक्टरों का हाथ काटने की बात कही है.
इस बयान पर विपक्षी दल ने तीखी प्रितिक्रिया दी है.
कितना तूल पकड़ेगा?
मुख्यमंत्री मांझी ने नाकारे डाक्टरों को चेतावनी देते हुए यह बात मोतिहारी की सभा में कही. कुछ ऐसा ही बयान जनवरी 2012 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे ने भी दिया था. उन्होंने भी वैसे सरकारी डॉक्टरों का हाथ काट लेने की बात कही थी जो मरीजों के इलाज में कोताही बरतते हैं. लेकिन उस बार डाक्टरों ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी. इस बार भी प्रतिक्रिया हो सकती है पर इस बार की प्रतिक्रिया शायद ही उतनी तीव्र हो क्योंकि इस बार दशहरा में रावण दहन के बाद मचे भगदड़ में घायलों का इलाज जब पटना मेडिकल कॉलिज में हुआ और उसके बाद मुख्यमंत्री मांझी पीएमसीएच पहुंचे तो अस्पताल के अधीक्षक को लापता पाया. इसके बाद तुरंत उन्होंने एक्शन लिया और अधीक्षक को निलंबित कर दिया. इस निलंबन के बाद डाक्टरों का मनोबल काफी कम हुआ है. वे पहले से ही सरकार के दबाव में हैं.
हालांकि मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद भाजपा ने इसकी मुखालफत की है और यहां तक कहा है कि मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया जाना चाहिए. लेकिन इस मामले को भाजपा ज्यादा तूल देने की पोजिशन में नहीं है. क्योंकि 2012 में नाकारे डाक्टरों का हाथ काटने वाला बयान जिन नेता ने दिया ता वह भाजपा के ही नेता अश्विनी चौबे थे. भाजपा तब शासन का हिस्सा थी. आज विपक्ष में है. आखिर एक ही मुद्दे पर वह अलग-अलग स्टैंड कैसे ले सकती है.
दूसरी तरफ एक वरिष्ट डाक्टर का कहना है कि मुख्यमंत्री द्वारा हाथ काटने के बयान के शब्दों को देखने के बजाये उसके निहितार्त पर गौर करने की जरूरत है. उनका कहना है कि हाथ काटने का मतलब हुआ कि काम नहीं करने वाले डाक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी, उनका अधिकार छीन लिया जायेगा.