पाटलिपुत्र ग्रूप आफ कम्पनीज के निदेशक अनील कुमार ने अपने ऊपर किये गये पुलिस केस पर खुल कर बात की और डीआईजी शालीन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने मुझ से कुछ मांग की थी जिसे मैंने पूरी नहीं कि तो मुझ पर कार्रवाई की गयी.
अब तक आप मेरे और मेरी कंपनियों के बारे में वही सब एकतरफा सुनते-छापते रहे हैं, जिसे प्रशासन, पुलिस ने आपको बताया। मेरा पक्ष अभी तक आप लोगों के सामने नहीं आया था।
आपको तो पता होगा..
आपको पता होगा कि 28 अप्रैल 2016 को मारपीट के मामले में पुलिस ने एक एफआईआर दर्ज किया था, जिसमें मेरा नाम भी पुलिस ने शामिल किया। सच यह है कि उस घटना से न मेरा और न मेरी कंपनी के किसी व्यक्ति का कोई लेना-देना था। एक साजिश के तहत मेरा नाम उसमें डाला गया। मेरे जैसे बिजनेसमैन के लिए यह किसी सदमे से कम नहीं था। मुझे इससे भी बड़ा सदमा तब पहुंचा, जब पुलिस ने कोर्ट में हलफनामा देकर यह बताया कि मैं अपनी प्रापर्टी बेच कर बिहार से भागने की तैयारी में हूं। इसी आधार पर पुलिस ने कोर्ट से कुर्की-जब्ती का आदेश भी हासिल कर लिया।
मेरे खिलाफ साजिश की हद तो तब हो गयी, जब 4 मई 2016 को पुलिस ने पाटलीपुत्र ग्रुप आफ कंपनीज की प्रापर्टी- होटल पाटलीपुत्र एग्जोटिका की कुर्की शुरू कर दी। जबकि उसी दिन जिला जज की अदालत ने सुबह 7.30 बजे ही मेरी गिरफ्तारी और मेरी किसी प्रापर्टी की कुर्की पर रोक लगा दी थी। लेकिन पुलिस ने कुर्की में जो सक्रियता दिखायी, उसमें मेरे खिलाफ पुलिस की इरादतन कार्रवाई और साजिश की साफ झलक दिख रही थी। पुलिस यह तकनीकी पक्ष भी समझने को तैयार नहीं थी कि होटल की प्रापर्टी मेरी व्यक्तिगत नहीं है। पुलिस और प्रशासन ने मेरे खिलाफ कई तरह के हथकंडे अपनाये। मीडिया को एकतरफा ब्रीफ किया गया। मजबूरी में मीडिया को उन खबरों को छापना-दिखाना भी पड़ा।
धमकी दी कि डीआईजी शालीन का हुक्म बजा रहे हैं
पुलिस लगातार मनमानी कर रही थी। 18 मई को मेरा बेल जिला जज ने रिजेक्ट किया, लेकिन मेरी संपत्ति की कुर्की पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद मेरे आवास की पुलिस ने कुर्की की। मेरे वकील कौशल और मेरे सहयोगी पुलिस से लगातार गुहार लगाते रहे और कोर्ट के आदेश दिखाते रहे, लेकिन पुलिस ने अपनी मनमानी की। संपत्ति कुर्क कर ली। इतना ही नहीं, पुलिस वालों ने धमकी दी कि वे अपने डीआईजी शालीन साहेब का हुक्म बजा रहे हैं। कोई आदमी बीच में आया तो उसे भी गिरफ्तार कर जेल भेज देंगे। पुलिस ने कुर्की की कार्रवाई के लिए भी सोच-समझ कर दोपहर 2 बजे का वक्त चुना था, जब कोर्ट बंद हो गया था। उसकी मंशा साफ थी कि उसकी मनमानी को कोर्ट में सुनने के लिए कोई उपलब्ध नहीं होगा। क्या इससे यह साबित नहीं होता कि पुलिस जानबूझ कर मुझे तबाह करने पर तुली हुई है।
अगले दिन हमने कोर्ट में कंटेंप्ट फाइल की। तब जाकर पुलिस व प्रशासन को होश आया। उन्हें लगा कि अब कुछ किया तो उनकी गर्दन फंस सकती है। उसके बाद आगे कुर्की की कार्रवाई रोकी गयी।
पुलिस को इतनी शह कहां से मिली हुई थी। क्या सरकार के इशारे के बगैर यह संभव है। उसने एक नहीं, कई नियमों की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। नियम के मुताबिक किसी के खिलाफ वारंट इश्यू होने के एक महीने बाद कुर्की का आदेश निर्गत होता है। पुलिस ने हमारे मामले में हफ्ते भर के भीतर कुर्की की हड़बड़ी दिखाई।
मुझे परेशान करने की सुनियोजित साजिश पुलिस ने रची थी। हमारे ऊपर फ्लैट अवंटन के 6 मामले पुलिस ने दर्ज कराये। ये वैसे मामले थे, जिनमें फ्लैट खरीदारों ने 75-80 फीसदी रकम ही एग्रीमेंट के तहत समय पर चुकायी थी। बाकी पैसे न मिलने के कारण हमारी कंपनी ने पहले ही उनके खिलाफ आर्बिटेशन के केस कर रखे थे। फिर भी पुलिस ने उन लोगों से हमारे ऊपर मारपीट और धोखाधड़ी के मुकदमे दर्ज करवाये। अब कोई यह बताये कि 75-80 प्रतिशत रकम लेकर उन्हें फ्लैट की रजिस्ट्री कैसे हो सकती थी। पूरे पैसे न मिलने और फ्लैट खाली रहने का केस पहले ही कंपनी ने उन पर कर रखा था, फिर धोखाधड़ी या मारपीट का सवाल कहां से आया। इससे ऐसा स्पष्ट नहीं होता कि पुलिस किसी के इशारे पर काम कर रही थी और इसके पीछे मंशा मुझे मानसिक और आर्थिक रूप से तबाह करने की थी। हमें प्रताड़ित करने का लगातार प्रयास होता रहा है।
मेरी समझ से डीआईजी शालीन की मुझसे खुन्नस की एक वजह यह हो सकती है कि फरवरी 2016 में उन्होंने अपने दो थानेदारों के मार्फत कुछ मांग की थी। उनकी मांग को पूरा करने में मैंने असमर्थता जतायी थी। तभी उन्होंने कहा था कि मेरी बात को न मानना महंगा पड़ेगा।
सरकारी गुंडगर्दी से काम ठप
बिहार में उद्यमियों-व्यवसायियों को आमंत्रित करने के लिए विकास पुरुष का दंभ भरने वाले मुख्यमंत्री राज्य और राज्य के बाहर जाकर सम्मेलन कर रहे हैं, उन्हें न्यौता दे रहे हैं। लेकिन बिहारी उद्यमियों की हालत मेरी जैसी करने पर तुले हुए हैं। सरकारी गंडागर्दी के कारण रियल एस्टेट का काम प्रायः बंद हो चुका है। शराबबंदी के नाम पर शराब व्यवसायियों की सरकार ने कमर तोड़ दी है। अब सरकार होटल उद्योग के सत्यानाश पर तुली है। बिहारी उद्यमियों के साथ ऐसे सलूक का संदेश अगर बाहर गया तो आप अंदाज लगा सकते हैं कि बिहार में उद्योग-व्यवसाय के लिए बाहर का कोई भी आदमी आने के पहले दस बार सोचेगा।
बिहारियों को बरबाद करने की मंशा
एक उद्यमी और बिहार का आम नागरिक होने के नाते मैं मुख्यमंत्री और डीआईजी शालीन जैसे उनके आला पुलिस अफसरों से यह सवाल करता हूं कि बिहार में बिहारी व्यवसायियों को बर्बाद करने के अलावा भी उनका कोई सपना है क्या। मेरे साथ सरकार की शह पर उसके नुमाइंदों ने जो सलूक किया है, उससे मैं न सिर्फ आहत हूं, बल्कि खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा हूं। मैं इतना आहत हो चुका हूं कि न खुद के लिए और न अपनी कंपनियों के लिए काम करने का माद्दा मेरे अंदर बचा है। हालात ऐसे बन गये हैं कि मैं बिहार में चल रही अपनी सारी कंपनियों को बेचने के लिए मजबूर हो गया हूं। मैं तो सबसे पहले मुख्यमंत्री को ही इसकी पेशकश करता हूं कि वे मेरी कंपनियों को खरीद लें। हालांकि मेरी आत्मा की आवाज यह है कि मुख्यमंत्री ने जिस कदर मुझे मजबूर करने की कोशिश की है, वे इसे एक बार में हड़प ही लें तो उनके लिए ज्यादा आसानी होगी।
बड़ी पीड़ा के साथ एक सवाल पूछ रहा हूं कि क्या व्यवसायी का कोई मान-सम्मान नहीं होता। मैं खुद को शुद्ध रूप से व्यवसायी मानता हूं। मेरे साथ दुर्दांत अपराधी जैसा सलूक किया गया। 18 फरजी मुकदमे मेरे खिलाफ दर्ज कराये गये। मेरे जमानतदारों को फरजी साबित करने का प्रयास किया गया। मुझे भू-माफिया जैसे संबोधन दिये गये। अदालत से अपराध साबित हुए बगैर कोई अपराधी नहीं माना जाता। लेकिन मेरे नाम के साथ घोषित अपराधी जैसा संबोधन लगाया गया।
बिहार सरकार और उसके आला पुलिस-प्रशासन के अफसरों ने मुझे इतनी पीड़ा पहुंचायी है कि आज और अभी से मैं अपनी तमाम कंपनियों के निदेशक पद से इस्तीफे की घोषणा करता हूं। मैं यह शपथ भी लेता हूं कि जब तक बिहार में उद्योग-व्यवसाय के अनुकूल कोई सरकार नहीं आती, तब तक किसी तरह का व्यवसाय यहां नहीं करूंगा।
(रविवार को पटना में प्रे वार्ता के दौरान जारी वक्तव्य