पटना- हिन्दी साहित्य को अपनी देन से बड़ी ऊंचाई प्रदान करने वाले अद्भुत प्रतिभा के साहित्यकार आचार्य शिवपूजन सहाय तपस्वी साहित्यकार थे। वे बिहार के अकेले साहित्यकार थे, जिन्हें महाकवि जयशंकर प्रसाद तथा उपन्यास-सम्राट मुंशी प्रेमचन्द जैसे हिन्दी के महान साहित्यकारों केसाथ अत्यंत निकट का संबंध रहा और वे सभी आचार्य जी के प्रति श्रद्धा रखते थे। पुस्तकों को शुद्ध तथा परिष्कृत कर साहित्यकारों को परिमार्यित करने का जो काम उन्होंने किया, वह किसी अन्य आचार्य ने नही किया। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में रहते हुए, उन्होंने बिहार राष्ट्र्भाषा परिषद के लिए जो कार्य किया वह एक इतिहास है।
यह विचार आज यहां बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह का उद्घाटन करते हुए, त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रो सिद्धेशव्र प्रसाद ने व्यक्त किये। प्रो प्रसाद ने उनके साथ बिताये क्षणों को स्मरण करते हुए कहा कि, उन्होंने आचार्य सहाय से सीखा की पुस्तकों का अध्ययन कैसे करना चाहिए। वे अद्भुत ढंग से पढना जानते थे, इसलिए उनकी लेखनी भी अद्भुत थी।
आचार्यजी को स्मरण करते हुए, प्रसिद्ध समालोचक डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, उन्होंने साहित्य जगत में ऐसे उल्लेखनीय कार्य किये जिन्हें कीर्तिमान कहा जा सकता है। उन्होंने राष्ट्रभाषा परिषद में एक वर्ष के भीतर एक सौ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन कराया। वे लालटेन की रौशनी में गये रात तक पुस्तकों की पांडुलिपिया देखा और शोधन किया करते थे। कहा जाता है कि, उनके हाथों में संपादन की ऐसी ‘छेनी और हथौड़ी’ हुआ करती थी, जिससे वे साहित्य-मूर्तियों को सुंदर आकृति प्रदान करते थे।
अपने अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, आचार्य सहाय की विद्वता की कोई तुलना नहीं थी। भाषा और शिल्प पर जो उनकी पकड़ थी, जो अधिकार था वह दुर्लभ है। इसीलिए वे हिन्दी साहित्य-संसार में महानतम संपादकों में परिगणित होते हैं। यही कारण था कि विश्वमहाकाव्य में परिगणित महाकाव्य ‘कामायनी’ के कवि जयशंकर प्रसाद तथा प्रेमचन्र्द्र जैसे साहित्यकार अपनी कृतियों के प्रकाशन से पूर्व उन्हें शिवजी से दिखा लेना, शोधन करालेना आवश्यक समझते थे। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन, जिसके वे अध्यक्ष भी रहे, इन ऐतिहासिक घटनाओं की साक्षी है। शिवजी की साधना की, भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ अलंकरण देकर, स्तुति की।
भारतीय प्रशासनिक सेवा से हाल हीं में निवृत हुए आनंद वर्द्धन सिन्हा, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा कुमार मंगलम ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्र ने ‘लाख छुपाये छुप न सकेगा’, अमियनाथ चटर्जी ने ‘अपनापन’, शालिनी पाण्डेय ने ‘उम्मीद’, राजकुमार प्रेमी ने ‘व्यक्तित्व’, सच्चिदानंद सिन्हा ने ‘पंडुकी’, डा विनय कुमार विष्णूपुरी ने ‘ऊपरवाला सबकुछ देखता है’, डा रमाकांत पाण्डेय ने ‘मौसी बन चुकी है’ तथा अनिल कुमार सिंन्हा ने ‘विद्या से बुद्धि श्रेष्ठ’ शीर्षक लघुकथाओं का पाठ किया।
समारोह में कवि राज कुमार प्रेमी, शंकर शरण मधुकर, डा बी एन विश्वकर्मा, नेहाल कुमार सिंह’निर्मल’, कृष्णमोहन प्रसाद, नीरव समदर्शी आदि साहित्यकार व सुधीजन उपस्थित थे। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्रनाथ गुप्त ने, धन्यवाद ज्ञापन प्रबंध मंत्री कृष्णरंअज्न सिंह तथा मंच संचालन अर्थमंत्री योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।