सफलता हर हाल में सफलता है,पर उस सफलता की बात ही कुछ और है जो आप जिद्द और समर्पण से हासिल करते हैं.कुछ ऐसा ही कर दिखाया है आईएएस राघेवेंद्र सिंहने.
एक समय दिल्ली के बेड़े विश्विद्यालय राघेवंद्र को दाखिला देने के योग्य भी नहीं समझते थे. पर कठिन परिश्रम और कुछ कर दिखाने की उनकी जिद्द ने उन्हें आगे बढ़ने का ज्जबा दिया.
2011 बैच के 216 वें रैंक पर चयनित और प्रशिक्षु आईपीएस ने पिछले साल ही तय कर लिया था कि उन्हें आईएएस बनना है. फिर उनका यह सपना इस बार साकार हो गया है और उन्होंने इसबार 12 स्थान प्राप्त किया है. अब वह आईएएस बन गये हैं.
एक साक्षात्कार में राघेवेंद्र कहते हैं, मेरा दाखिला बड़ी मुश्किल से एमए में हुआ. उसी रात मैंने तय किया कि मैं अपनी कमजोरियों को ही अपनी मेहनत का आधार बनाऊंगा. जेएन यू से मैंने एमए के बाद एमफिल किया और फिर पीएचडी शुरू की और जितना संभव था, मेहनत की.
फिर 2011 में मैं सिविल सेवा परीक्षा में 216 वां स्थान प्राप्त किया.
इस सफलता ने राघेवेंद्र के अंदर अतिउत्साह और आत्मविश्वास दोनों भर दिया. वह आईपीएस बन चुके थे. फिर राघवेंद्र ने दिल में यह ठान ली कि उन्हें तो आईएएस ही बनना है. दिल्ली एनसीआर के रहने वाले राघवेंद्र ने कड़ी मेहनत की और इस वर्ष उन्होंने वह कर दिखाया जिसका सपना उन्होंने पिछले साल देखा था.
2012 की सिविल सेवा परीक्षा में राघवेंद्र को 12 वां स्थान प्राप्त हुआ है.
राघवेंद्र की सफलता उन लोगों के लिए प्रेरणा है जिन्होंने अपने जीवन में असफलता देखी है. राघवेंद्र इसलिए भी प्रेरक हैं क्योंकि उन्होंने अपने अंदर हार न मानने की जिद्द पाल रखी थी और अंतिम युद्ध में अपनी जीत का सपना देखा था.