एक साल में दो त्रासदियों की पीड़ा झेल चुके गांधी मैदान के साथ कई सवाल और दुश्वारियों की याद जुड़ गयी हैं। पढि़ए तारीखों का आकलन करता यह आलेख।
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एक साल के भीतर गांधी मैदान में दूसरी बार निर्दोष लोगों की जानें गयीं। पहली बार 27 अक्टूबर, 2013 को हुए आतंकी विस्फोट में सात जानें गयीं और अब 3 अक्टूबर, 2014 को भगदड़ में 33 लोग मारे गए। पहली घटना के एक साल भी नहीं हुए कि उससे 23 दिन पहले ही गांधी मैदान की बदइंतजामी एक बार फिर पटनावासियों की जान पर बन आयी। चश्मदीदों की मानें तो एक लड़की से छेड़खानी का उसके परिजनों ने विरोध किया, जिस पर मारपीट हो गयी। इसी बीच कोई मैदान के दक्षिणी गेट पर पहले से टूटकर गिरे केबल में उलझ गया। क्षण भर बिजली का तार गिरने की अफवाह फैल गयी। देखते ही देखते भगदड़। चिखते-चिल्लाते भागते लोग दक्षिणी गेट पर जीर्णशीर्ण और खतरनाक हालकाउ कैचर में उलझकर एक-दूसरे पर गिरते गए, जिससे हताहतों की संख्या बढ़ती गयी।
डॉ तीर विजय सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
मौके पर तैनात पुलिसकर्मी पहले से चौकन्ने होते तो इतनी जानें नहीं जाती। कहा यह भी जा रहा है कि विशिष्ट व्यक्तियों के लिए दो गेट रिजर्व किए जाने से भी दक्षिणी गेट पर भीड़ का दबाव बढ़ गया था। सवाल उठता है कि आखिर ऐसी घटनाएं और लापरवाही गांधी मैदान में क्यों। जबकि सभी को पता है कि यहां हर कार्यक्रम में भारी भीड़ होती है। जिस गांधी का नाम लेकर सभी हुक्मरान देश और जनता की सेवा का राग सुनाते हैं, उन्हें इस बात का ख्याल क्यों नहीं रहता कि इस मैदान हिंसा न हो। किसी को पीड़ा न पहुंचे। गांधी के विचार और उनकी तपस्या का कम से कम उनके सामने अपमान न हो। एक साल के भीतर दो बार सुरक्षा प्रबंध की लापरवाही की कीमत बेकसूर लोगों ने जान गंवा कर चुकायी।
इतिहास का साक्षी गांधी मैदान
इसी मैदान में जय प्रकाश नारायण ने 5 जून, 1974 को संपूर्ण क्रांति का नारा बुलंद किया था। उन्हीं की अगुआई में आगे बढ़े लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और सुशील मोदी आज बिहार के कद्दावर नेता हैं। लालू प्रसाद को भी अपनी असल ताकत 30 अप्रैल, 2003 को यहां आकर ही पता चली। 4 नंबर, 2012 को अधिकार रैली कर नीतीश कुमार ने भी यहीं से लोकप्रियता का लोहा मनवाया था। और भी कई तारीखें हैं। शासन- प्रशासन को गांधी मैदान की दशा और सुरक्षा पर ध्यान देना होगा। मैदान के भीतर जगह-जगह गड्ढे अंदर की बदइंतजाती दिखाते हैं, तो विस्फोट और भगदड़ की घटनाएं पुलिस प्रशासन की नाकामी बयां करती है। मैदान के रखरखाव के जिम्मेवार लोग और भी गंभीर नहीं हुए तो इतिहास लिखने वाला गांधी मैदान खुद इतिहास बन जाएगा।
साभार- हिन्दुस्तान