तालिबान कमांडर अदनान राशिद ने तालिबान हमले में जिंदा बची मलाला यूसुफ जई को एक खत लिखा है और बताना चाहा है कि वो लड़कियों की शिक्षा के खिलाफ नहीं हैं, पेश हैं पत्र के अंश–
अज़ीज़ा मलाला यूसुफ जई
तुम पे खुदा की रहमत हो
‘मैंने तुम्हारे बारे में पहली बार बीबीसी उर्दू पर सुना था। उसी समय मैं तुम्हे पत्र लिखना चाहता था और यह सलाह देना चाहता था कि तुम तालिबान विरोधी गतिविधियों के खिलाफ लिखना बंद करो, लेकिन तुम्हारा पता नहीं मिल पाया। हम दोनों यूसुफजई जनजाति से हैं इसलिए मेरी भावनाएं तुमसे जुड़ी हैं।
तालिबान का तुम पर हमला इस्लामिक तौर पर सही है या नहीं मैं इस बहस में पड़ना नहीं चाहता।
माला, यकीन मानो कि तालिबान ने पढ़ाई की वजह से तुम पर हमला नहीं किया। तालिबान और मुजाहिदीन लड़के और लड़कियों की शिक्षा के खिलाफ नहीं हैं। मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि भारतीय उपमहाद्वीप बहुत उच्च शिक्षित था और अंग्रेजों के आक्रमण से पहले लगभग हर नागरिक पढ़ लिख लेता था। स्थानीय लोग ब्रिटिश अधिकारियों को अरबी, हिंदी, उर्दू और फारसी सिखाते थे। यही नहीं मुस्लिम शासक शिक्षा पर खूब खर्च करते थे। गरीबी या धर्म को लेकर कोई झगड़ा नहीं होता था क्योंकि शिक्षा प्रणाली महान विचारों और महान पाठ्यक्रम पर आधारित होती थी।
मलाला, मैं तुम्हारा ध्यान सर टीबी मैकाले द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप में किस प्रकार की शिक्षा प्रणाली की जरूरत है इस संबंध में दो फरवरी, 1835 को ब्रिटिश संसद को लिखे सुझाव की ओर आकर्षित कराना चाहता हूं। मैकाले ने लिखा था,’हमें ऐसा वर्ग तैयार करना है जो हमारे और हमारे द्वारा शासित करोड़ों लोगों के बीच दुभाषिए का काम कर सके, जो रक्त और रंग में तो भारतीय हो लेकिन पंसद, विचार, आदर्श और बुद्धि से अंग्रेज हो।’
मलाला, तुम समझने की कोशिश करो यही वह कथित शिक्षा प्रणाली है जिसके लिए तुम मरने को तैयार हो।
देखो मलाला, जो दया भाव आपने पैगंबर मुहम्मद से सीखा काश उसे पाकिस्तानी सेना भी सीखती ताकि वे मुसलमानों का खून बहाना बंद कर देते।..जो दया भाव आपने यीशू से सीखा है वो अमेरिका और नाटो सेना को सीखना चाहिए। यही कामना मैं बुद्धा के अनुनायियों से करता हूं कि वे निर्दोष और निहत्थे मुसलमानों को बर्मा में मारना बंद करें।
मैं चाहता हूं कि यही बात भारतीय सेना महात्मा गांधी से सीखे।
तुम्हार खैरख्वाह
आदनान राशिद