समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी कर्पूरी जयंती पर कार से सफर पर निकले. पेट्रोल पम्पों के चक्कर लगाते रहे. और अंत में थक हार कर भाजपा सरकार पर झुल्ला पड़े और बोले सब मर्ज की एक दवाई, भजपाई-भाजपाई.
ख़बर है कि रिज़र्व बैंक नक़दी लेनदेन पर अंकुश लगाने के मक़सद से कम नोट छाप रहा है।इससे बाज़ार में नोटों की क़िल्लत पैदा होगी और लोगों पर डिजिटल लेनदेन का दबाव पड़ेगा।हमारे प्रधानमंत्रीजी तो डिजिटल लेनदेन के ऐसे उत्साही प्रचारक हो गये हैं कि पेटीऐम और जीयो जैसी कंपनियों ने अपने विज्ञापन में उनका फ़ोटो तक इस्तेमाल कर लिया।निजी व्यापारिक कम्पनियों द्वारा अपने विज्ञापन में प्रधानमंत्री की तस्वीर के इस्तेमाल की यह पहली घटना है।
सम्भवत: प्रधानमंत्री कार्यालय ने बाद में बताया था कि बग़ैर इजाज़त के इन कम्पनियों ने प्रधानमंत्री के तस्वीर का इस्तेमाल किया था।लेकिन तस्वीर के इस अनाधिकृत इस्तेमाल के विरुद्ध कोई कार्रवाई का नहीं होना चिंता का विषय है।
डिजिटल लेनदेन का बग़ैर पर्याप्त ढाँचा तैयार किए कम नोट छापकर सरकार और रिज़र्व बैंक आम आदमी को मुसीबत डालने जा रहा है।इसका प्रत्यक्ष तजुरबा 24 जनवरी को हुआ।कहानी यह है कि उस दिन मिथिला यूनिवर्सिटी के कर्पूरी जयंती समारोह में शरीक होने के लिए दरभंगा गया था।पत्रकार श्रीकांत भी साथ थे।वहाँ से पटना लौटने के क्रम में मुज़फ़्फ़रपुर के बाद ड्राइवर ने तेल लेने के लिए कहा।एक दिन पहले एटीएम से दस हजार रू. निकाला था वह मेरी जेब में था।लेकिन अगले दिन वह किसी को देना था।
एटीएम से अगली निकासी हप्ते भर बाद ही हो सकती थी।इसलिए तेल का भुगतान डेविड कार्ड से करना चाहता था।हमलोग पाँच पंपों पर गए।लेकिन किसी में कार्ड से भुगतान की सुविधा नहीं थी।गाड़ी का तेल मत ख़त्म हो जाए इस डर से पाँचवे पंप पर मनमार कर नक़द भुगतान से ही तेल लेना पड़ा।श्रीकांत ने कहा कि डिजिटल भुगतान का आज सर्वे ही हो गया।
प्रधानमंत्रीजी, उनकी सरकार और पुरी भाजपा सभी रोगों की एक दवा के रूप में डिजिटल लेन देन का शोर मचा रही है।लेकिन इसकी ज़मीनी हक़ीक़त क्या है यह 24 जनवरी को हमलोगों ने देख लिया।
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