पत्रकार आजकल बीजेपी के पेड एजेंट बन गए हैं। वह बिहार में तेजस्वी यादव के इस्तीफे की सुपारी ले चुके हैं। हर हाल में इस्तीफा लेकर ही दम लेंगे। वह कहते हैं अभी इस्तीफा दें अन्यथा, चार्जशीट के बाद इस्तीफा देना पड़ेगा।
अमित कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
मैं मानता हूं कि राजनीति में नैतिकता के नाते भ्रष्टाचार के आरोप पर इस्तीफा देने की परंपरा रही है। इसका अनुपालन होना चाहिए। लेकिन इस्तीफा कौन मांगेगा? बीजेपी वह पहले अपने गिरेबान में झांके? नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उनके मंत्रिमंडल में पांच विभागों का मंत्री बाबू भाई बोखिरिया को खनन घोटाले में कोर्ट से तीन साल की सजा हुई। नरेंद्र मोदी उन्हें मंत्री बना कर रखा, इस्तीफा तो दूर विभाग भी नहीं बदला।
अब नीतीश कुमार और इस्तीफे की नैतिकता पर आइये! हिन्दुस्तान अखबार में पत्रकार भोलानाथ की खबर छपी थी, जिसमें नीतीश सरकार में तब मंत्री आर एन सिंह पर भ्रष्टाचार का एक मुकदमा लंबित होने की जानकारी दी गयी थी। बिजली विभाग में सेवारत रहने के दौरान कथित तौर पर भ्रष्टाचार किया था, उससे संबंधित मुकदमा दर्ज था। अगले दिन मंत्री का इस्तीफा ले लिया गया।
उसी पत्रकार ने फिर तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री श्रीभगवान सिंह कुशवाहा पर हत्या के कई मुकदमे लंबित रहने संबंधी रिपोर्ट प्रकाशित की, नीतीश कुमार मौन साध लिए। कोई कार्रवाई नहीं हुई। फिर कई मंत्रियों को कच्चे चिट्ठे खुले पर कुछ नहीं हुआ।
जो चार सौ बीसी अर्थात, धोखाधड़ी का मुकदमा तेजस्वी पर हुआ है, वैसा ही मामला नीतीश सरकार में तत्कालीन पर्यटन मंत्री बीजेपी नेता सुनील कुमार पिंटू पर भी था, मामला सामने आने के बाद भी नीतीश कुमार खामोश रहे। फिर तो अनेकों मंत्रियों विशेषकर भाजपाइयों के काले कारनामे उजागर हुए नीतीश कुमार की एक न चली। उसी समय बीजेपी कोटे से सहकारिता मंत्री रहे रामाधार सिंह को पद छोड़ना पड़ा था, लेकिन उनका मामला जुदा था। कोर्ट से वारंट जारी हुआ था, उन्हें कोर्ट में आत्मसमर्पण करना था। उन्हें जेल भेजा जा रहा थाइसलिए उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।
श्याम रजक, प्रेम कुमार, अश्विनी चौबे आदि पर दंगे भड़काने के अलावा भी कई आपराधिक मुकदमे चल रहे थे। कुछ नहीं हुआ। और तो और खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हत्या का एक मुकदमा लंबित था। बाढ़ के एक न्यायालय से उनको समन जारी हुआ था। लेकिन उस मामले में उच्च स्तरीय दबाव से दबाया गया। राज्य सरकार का पूरा कानूनी अमला दम लगाकर उन्हें बरी करवाया। अर्थात, खुद नीतीश कुमार ने आरोप सामने आने पर नैतिकता के नाते पद नहीं छोड़ा।
इसलिए बिहार के पत्रकार जो सुपारी पत्रकारिता कर रहे हैं, उससे बाज आएं। अन्यथा, आपकी विश्वसनीयता दो कौड़ी की भी नहीं रहेगी!