चम्पारण को खुद पर गौर करने के लिए इसके पास कई ऐतिहासिक धरोहरें हैं. केसरिया का स्तूप दुनिया का सबसे बड़ा स्तूप इसी चम्पारण में है तो लौरिया का अशोक स्तंभ, महान अशोक की यादों को आज भी साकार करता दिखता है. सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में चम्पारण का योगदान भी चम्पारण वासियों को गर्वान्वित करने के लिए काफी है, जहां 1917 में महात्मा गांधी पहुंचते हैं क्योंकि यहीं चम्पारण सत्याग्रह का आगाज भी होता है जिसे से आजादी का संघर्ष आगे बढ़ता है.
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
चम्पारण की, नेपाल से लगने वाली अंतरराष्ट्रीय सीमा सामरिक रूप से महत्वपूर्ण तो रही ही है यही रक्सौल आज भी पर्यटन की दृष्टि से बिहार के लिए गर्वबोध का एहसास भी कराता है. इन सब बातों के बावजूद चम्पारण की ऐतिहासिक धरोहरों का मौजूदा स्वरूप कूल-कूल नहीं है.
भले ही अशोक स्तंभ और केसरिया के स्तूप को सरकारों ने बचाने-संवारने का कुछ काम किया हो लेकिन चम्पारण के मुख्यालय मोतिहारी के हृदय में मौजूद मोती झील इस शहर की दुखती रग जैसी बदस्तूर बनी हुई है. राज्य के किसी शहर के बीचोबीच इतनी मनोरम झील नसीब में नहीं.
आंखों को चुभन
468 एकड़ क्षेत्र में फैली इस झील के किनारों पर आप पहुंचते हैं तो आपके पास गर्व करने जैसा कुछ भी नहीं महसूस होता, बल्कि इसे देखते ही आप की आंखों को इसकी दुर्दशा चुभन दे जाती है. खासकर तब जब आप भोपाल के भोजताल, कश्मीर की डल झील को देख चुके हों तो. कश्मीर की मनोरम वादियों में बसी डल झील की सुंदरता पर पूरे देश को गर्व है तो यही गर्व मोतिहारी वासियों को मोती झील को देख कर होता, पर ऐसा कत्तई नहीं है. लेकिन जब आप इस झील को देख कर भोपाल के भेजताल को देखें तो आप को लग सकता है कि, अगर इस झील को संवार दिया जाये तो किसी मायने में यह भोपाल की झील से उन्नीस नहीं होगी. और तब यहां भी हजारों पर्यटक आकर बोटिंग का लुत्फ उठा सकेंगे. पर हकीकत यह है कि गलाजत भरे पानी, शहर के बजबजाते नालों की इस झील में उतरती श्रंखाला और जलकुंभी के मकड़ जाल ने इसके सौंदर्य को कलंकित कर रखा है.
मोतिहरी की डल झील
एक जमाने में मोतिहारी की डल लझील कही जाने वाली मोती झील वीरानियों की यादें भर रह गयी हैं. यह हाल दशकों से है. लेकिन संतोष की बात है कि मोतिहारी के कुछ उत्साही युवाओं और गंभीर राजनीतिक नेतृत्व ने इस झील को संजोने-संवारने के लिए सड़क से लेकर केंद्र और राज्य सरकार के आशियानों तक उतरते रहे हैं. इन सामुहिक प्रयासों का नतीजा, एक सुनहरी उम्मीद के रूप में कभी-कभी सामने आ तो जाती है पर नौकरशाही की पेचीदगियों और टॉप लेवल के राजनीतिक नेतृत्व की असंवेदनशीलता उम्मीदों पर पानी भी फेरती रही है.लेकिन आंदोलनों और संघर्षों के लिए मशहूर चम्पारण के युवा जहां अब कमर कस चुके हैं वहीं मोतिहारी नगर परिषद के अध्यक्ष प्रकाश अस्थाना इस झील के भविष्य को लेकर काफी सक्रिय हुए हैं.
मोतिहारी के युवाओं ने असरारुल हक की अध्यक्षता में मोती झील बचाओ अभियान समिति का गठन कर सक्रियता बढ़ा दी है. कैंडल मार्च और मशाल जुलूस के जरिये जहां लोगों में जागरूकता लाने की कोशिश मोती झील बचाओ अभियान समिति ने की है वहीं इसके द्वारा शासन पर दबाव भी बनाया गया है.
जगी है उम्मीद
प्रकाश अस्थाना पिछले दो वर्ष से मोतिहारी नगर परिषद के अद्यक्ष हैं. वह बताते हैं कि मोतीझील के सौंदर्यीकरण से जुड़े प्रस्ताव पर राज्य और केंद सरकार से कई बार बात हुई है. सरकार इस दिशा में आगे भी बढ़ रही है. 2013 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को पत्र लिखा जिसमें तीन महत्वपूर्ण मुद्दे उठाये गये. इनमें झील के सौंदर्यीकरण के लिए प्राधिकरण का गठन करना, उद्योगिक कचरे को इसमें गिरने से रोकना और झील का परिसिमन करने जैसे मुद्दे उठाये गये. इस मामले में अगली प्रगत तब हुई जब जनवरी 2015 में चीफ मिनिस्टर की अध्यक्षता में प्राधिकार का गठन हो गया और केंद्र सरकार की तमाम चिंताओं को दूर कर दिया गया. इससे जुड़ी रिपोर्ट भी इसी वर्ष फरवरी में केंद्र सरकार को भेज दी गयी. लेकिन इस बीच योजना आयोग भंग हो जाने के कारण कुछ रुकावट आ गयी. अस्ताना कहते हैं फाइलों और नियमों के चक्कर में मोती झील अब भी फंसी है लेकिन निश्चित रूप से हम इस दिशा में काम करते रहेंगे और सफल भी होंगे.
वह कहते हैं कि लौरिया के स्तूप को देखने विदेश पर्यटक प्रति दिन आते हैं, वे अशोक स्तंभ देखने जाते हैं. अंतरराष्ट्रीय सीमा रक्सौल होने के कारण यहां पर्यटक आते हैं. अगर मोती झील का सौंदर्यीकर हो जाये तो यहां पर्यटन की आपार संभवानायें बढ़ जायेंगी.
पर सवाल यह है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच झूलती मोती झील की बदहाली दूर होने और इस सुंदर बनाने के लिए चम्पारण वासियों को और कितना इंतजार करना पड़ेगा.