मीडिया का एक बड़ा हिस्सा और साम्प्रदायिक उन्माद को हवा देने वाली पार्टियां आखिर क्यों आमरि खान के बयान को हवा दे रही हैं. आइए उनके इस बवाल के पीछ के षडयंत्र को देखें.

तथागत बायें, पीबी आचार्य दायें
तथागत बायें, पीबी आचार्य दायें

नौकरशाही न्यूज

जब आमिर खान कुछ विशिष्ट लोगों के साथ बातचीत कर रहे थे तो उन्होंने उन आशंकाओं का महज जिक्र किया जिसमें उन्होंने बताया कि देश में बढ़ती असहिष्णुता से बहुत सारे लोगों के साथ-साथ वह बी विचलित हुए हैं. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर उनकी पत्नी किरण राव ने उनसे एक बार बात करते हुए कहा था कि ऐसी हालत में उन्हें भारत छोड़ देने पर विचार करना चाहिए.

आमिर ने जब इतना कहा तो उसके बाद भारत के मीडिया के एक हिस्सा ने इसे तूल देना शुरू कर दिया. फिर भाजपा, आरएसएस की अनुसंगिक इकाइयां और अन्य संगठन आमिर और उनके मजहब के हवाले से उनकी आस्था पर हमला करने लगे. आखिर इस में आमिर ने कौन सी ऐसी बात कह दी कि सोशल मीडिया से ले कर मेनस्ट्रीम मीडिया तक में एक खास मानसिकता वाले लोगों ने बवाल मचा दिया. दर असल इस बवाल के पीछे कुछ और गहरी साजिश थी. वह साजिश क्या थी. आइए जानते हैं.

आमिर तो बहाना थे… 

जब आमिर अपनी बात कह रहे थे तो उसके एक दिन पहले असम के गर्वनर बीपी आचार्य जो खुद, आरएसएस के स्वयंसेवक रहे हैं, ने एक समारोह में साफ कहा कि भारत हिंदुओं के लिए हैं. उनके इस जहरीले बयान पर जब पत्रकारों ने टोका तो उन्होंने आगे कहा कि मुसलमान पाकिस्तान या बांग्लादेश जाने के लिए आजाद हैं.

एक आम और सुधी दिमाग रखने वाला कोई भी नागरिक संघी परवरिश और संस्कृति में पलने वाले, लेकिन संवैधानिक पद पर बैठे बीपी आचार्य के इस जहरीले कथन को पढ-सुन कर शर्म से अपना सर झुका लिया. संवैधानिक पद पर बैठा और राज्यपाल की गरिमा को अपमानित करके खाक में मिला देने वाले इस व्यक्ति के बयान पर मीडिया और प्रबुद्ध वर्ग को बवाल मचाना चाहिए था. तब पूरे देश से आचार्य को हटा कर उनके ऊपर केस दायर करने की मांग होनी चाहिए थी. उनके खिलाफ पूरे देश को गोलबंद होना चाहिए था क्योंकि गवर्रनर होने के बावजूद आचार्य ने देश की गरिमा, पद की मर्यादा को तार-तार कर दिया था. लेकिए…. लेकिन  एक गहरी साजिश के तहत खास मानसिकता से ओतप्रोत मीडिया के एक हिस्से और साम्प्रदायिक घृणा के बीज बो कर सियासत की खेती करने वाले मुट्ठी भर लोगों ने आमिर के बयान को इतना उछाला कि असम के गवर्नर की जहरीली बयानबाजी दब कर रह गयी.

राज्यपाल का पद देश में राष्ट्रपति के बाद सबसे गरिमामय माना जाता है. माना जाता है कि इस पद पर बैठा व्यक्ति धर्म, सियासत और समाज को बांटने वाली मानसिकता से पवित्र होगा. लेकिन जब आचार्य ने देश की प्रभुता और अखंडता को चुनौती दे दी तो साम्प्रदायवादियों ने इस बयान को दबाने के लिए आमिर के बयान को इतना उछाला कि आचार्य की बात दब के रह गयी.

 

हालांकि इससे पहले त्रिपुरा के गर्वरन तथागत राय जो खुद भी संघी बैकग्राउंड से हैं, ने सितम्बर में याकूब मैमन के जनाजे में शामिल होने वालों को संभावित आतंकवादी कह कर संबोधित किया था और इसकी जांच तक कराने की बात कही थी.

इस देश में घृणा को हवा दे कर राष्ट्रवाद की थोथी दलील देने वाले अनुपम खेर, जिनका सिनमाई चरित्र भारत को विस्फोट से तबाह करने वाले की रही है, ने खुद राष्ट्रवाद को चोला पहन लिया.

By Editor

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