बिहार में शराबबंदी पर तीन ध्रुवी सियासत हो रही है. एक सियासत पक्ष-विपक्ष कर रहा है, तो दूसरी सत्ता पक्ष के अंदर राजद- जदयू कर रहे हैं जबकि तीसरी सियासत मीडिया का एक हिस्सा कर रहा है.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
शराब बंदी पर समाज के लाभ-हानि का मुद्दा अपनी जगह है. बड़े पैमाने पर लोग इस्का समर्थन कर रहे हैं. कुछ लोग इसके विरोधी हैं पर वे इसका सीधा विरोध का सहस नहीं कर पायेंगे क्योंकि शराबनोशी सामाजिक बुराई का एक रूप अब भी माना जाता है.
पहली सियासत; विपक्ष पर हमले का हथियार
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी को एक बड़े सियासी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. वह यूपी, झारखंड, दिल्ली में घूम- घूम कर राज्य और केंद्र सरकारों को शराब पर पाबंदी लगाने की चुनौती दे रहे हैं. वह पीएम मोदी से, अखिलेश यादव से, झारखंड के मुख्यमंत्री से कह रहे हैं कि शराबबंदी पर अपने विचार स्पष्ट करें. जाहिर है नीतीश के इस सवाल का किसी के पास सीधा जवाब नहीं है. और इसी बहाने नीतीश उन पर हमला पर हमला किये जा रहे हैं. आगे भी करेंगे. यह तय है.
इधर राज्य में विपक्षी नेता सुशील मोदी से ले कर प्रेम कुमार, मंगल पांडेय और रामविलास तक शराब बंदी कानून की खामियों पर नीतीश सरकार को घेरने-घसीटने में लगे हैं. उनके पास इनडायरेक्ट आक्रमण के अलावा दूसरा कोई रास्ता भी नहीं है. वह खुद को शराबबंदी का समर्थक भी बतायेंगे पर इससे जुड़े मुद्दों पर हो-हल्ला भी करते रहेंगे.
दूसरी सियासत; लालू बनाम नीतीश
यह सबको पता है कि बिहार की महागठबंधन सरकार में राजद बड़ा दल है. ऐसे में किसी भी फैसले का राजनीतिक लाभ का वह खुद को बराबर का हिस्सेदार मानता है. लेकिन पिछले चार महीने में, जब से यह कानून अमल में आया है, वह महसूस कर रहा है कि नीतीश अकेले इसकी वाहवाही लूटने में लगे हैं. इसलिए कई महीने की खामोशी के बाद राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने फैसलाकुन हस्तक्षेप किया. उन्होंने ताड़ी पर लगी पाबंदी को खत्म करवाने के लिए सरकार को मनाया. ऐसे में उन्होंने ताड़ी के कारोबार में लगी अतिपिछड़ी जातियों की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश की. साथ ही यह भी कहा कि शराबबंदी कानून के प्रावधान में सजा पर कुछ तकनीकी सुधार की जरूरत हुई तो वह भी किया जायेगा. यह बात कहने के पीछे उनकी मंशा यह है कि कानून के कुछ प्रावधान कालांतर में अगर अव्यावहारिक महसूस हुए तो उसे जरूरत पड़ने पर बदला जा सकता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शराबबंदी में कोई ढ़ील देने की उनकी कोई मंशा है. लेकिन यह भी निश्चित है कि शराबबंदी के सियासी लाभ-हानि से वह खुद को अलग नहीं रखना चाहते.
तीसरी सियासत:मीडियायी भ्रमजला
जब से शराबबंदी कानून लागू हुआ है तब से मीडिया का एक वर्ग इस मामले में बहती गंगा में हाथ धोने जैसी भूमिका में लगा है. कुछ मीडिया इस मामले में लालू-नीतीश के कदम को तूल देने की कोशिश में हैं. कुछ मीडिया तो यहां तक खबर चला रहे हैं कि ताड़ी के बाद अब शराब से भी बैन हटाने का दबाव नीतीश कुमार पर है. जबकि ऐसी कोई कोशिश न तो लालू प्रसाद की तरफ से की जा रही है और न ही नीतीश पर इस तरह का कोई दबाव है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और यहां तक की उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस मामले में कई बार कह चुके हैं कि इस मुद्दे पर कुछ लोग भ्रम फैलाने की कोशिश में हैं. जाहिर तौर पर उन दोनों का इशारा मीडिया के एक वर्ग की तरफ है.
उधर शराबबंदी के लाभ-हानि पर नीतीश सरकार एक अध्ययन कराने पर विचार कर रही है. सरकार का इशारा इसके सामाजिक प्रभाव को ले कर है. लेकिन इस अध्ययन से यह बात भी सामने आनी चाहिए कि शराब से मिलने वाले लग भग चार हजार करोड़ के राजस्व की भरपाई के लिए सरकार क्या उपाय कर रही है.