अब दिल्ली सलतनत पर गुजरात का कब्जा है. जहां नफरत के नारे दिलों में पेवस्त किये जा रहे हैं. सलतनत ए दिल्ली का नया शहंशाह खामोशी से घृणा के इन नारों को अपनी मौनस्वीकृति दे रहा है.
हवा के साथ-साथ मुहावरों का रूख भी बदल गया। पहले हर समस्या की तान दिल्ली पर टूटती थी। दिल्ली ऊंचा सुनती है। अब नया मुहावरा। गुजरात ऊंचा सुनता है। एक मुहावरा था, हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त। अब है, हुनूज़ गुुजरात दूर अस्त। अर्थात अभी तक गुजरात बहुत दूर है।
मोदी ने सरकार संभालते ही दिल्ली को गुजरात का रोल माॅडल बनाना आरम्भ किया। पूंजीपतियों का गढ़ रहा है गुजरात। समस्या तो तब आई जब मुख्यमंत्री बनते ही गोधरा बनाम गुजरात के तर्ज पर बदला लेने का सरकारी फरमान जारी हुआ। यह नृंशस हत्याओं का ऐसा इतिहास था, जिसने गुजरात को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया। और गुजरात पर पूर्व प्रधनमंत्री बाजपेयी के बयान के बाद भी माफी न मांगने, शर्मसार न होने वाले मोदी कट्टरपंथियों के नायक बन बैठे।
आरएसएस को 1925 के बाद उनमें एक ऐसे शासक का अक्स नजर आया, जो अपने मुस्लिम विरोधी कट्टरपंथी चेहरे द्वारा 800 वर्षों के सपने को साकार कर सकता था। यानी हिन्दू राष्ट्र का निर्माण।
नफरत भरे मुहावरे
देखा जाये तो मुहावरों में और यथार्थ की सतह पर यहीं से दिल्ली खिसकती गई और दिल्ली की जगह गुजरात लेता गया। सरकार बनी तो दिल्ली में पर मॉडल गुजरात ही रहा- यानी घृणा और द्वेष के एजेंडे को आगे बढ़ाने का मॉडल. गुजरात का मॉडल था, नृशंस हत्या द्वारा भय पैदा करना। इस कार्य को अमित शाह द्वारा खेला गया। याद कीजिए उनका लखनऊ का भाषण, कि “दंगों से हमारी विजय-यात्रा आरम्भ होती है”। इस विजय यात्रा में हजारों नारे ; ‘मुसलमानों को पाकिस्तान भेजो’, ‘भारत हिन्दुओं का है’, ‘मुसलमानों की घर वापसी करो’, ‘लवजिहाद से बेटी बचाओ और बहू लाओ’ आंदोलन तक दिल्ली पर गुजरात मॉडल की भुमिका हावी रही है। लेकिन सबसे खास बात यह है कि जब ये मुहावरे गढ़े और प्रसारित किये जाते हैं तो नरेंद्र मोदी चुप रहते हैं. चुप्पी मौन स्वीकृति का ही एक रूप तो नहीं?
दिल्ली बार बार लुटती और आबाद होती रही है। मोदी इसी इतिहास की अगुवाई में मुसलमान बनाम अकलियतों को हाशिये पर फेंक कर ऐसे विजेता बनने का सपना देख रहे हैं, जहां आगे आने वाले समय में कोई भी उनके विरोध में सामने न आ सके। हिन्दू राष्ट्र का निर्माण एक ऐसा ही सपना है, जिसे पूरी ताकत से भाजपा और आरएसएस ने मीडिया को बेचा। देश के सेक्युलर हिन्दुओं को भी इसी रास्ते पर डालना एक कठिन कार्य था। लेकिन अगर वह इन सेक्युलर ताकतों को मुसलमान की छवि को खतरनाक और देशद्रोही छवि का रूप दे कर पेश करते रहें तो करोड़ों अमनपसंद हिंदुओं के दिलों में भी मुसलमानों के प्रति नफरत का जहर घोलने में वे कामयाब हो जायेंगे. आप मोदी के छः महीने का इतिहास देख लें। अब इसी इतिहास की नई कड़ी में गुजरात का नया नाम जुड़ गया है।
हिंदू दहशतगर्द बनाम फर्जी मुसलमान
मुसलमानों को बदनाम करने के लिए गुजरात पुलिस ने ‘मार्क ड्रिल’ का नाटक खेला, जानबूझ कर मुसलमानों की तरह काल्पानिक टोपी पहना कर देश और दुनिया को यह मैसेज देने की कोशिश की कि यह है ‘आतंकवादी मुसलमान’। गुजरात पुलिस भूल गई कि तांडेर में जहां हिन्दू दहशतगर्द बम बनाते पकड़े गये थे, वहां भी पफर्जी दाढ़ी और टोपी मिली थी।
अभी हाल में बेंग्लौर में एक हिन्दू ने मोदी और राष्ट्रपति को मारने के लिए फर्जी इस्लामिक साइट का सहारा लिया। इतिहास के काले पन्नों में हिन्दू महासभाई पहले भी फर्जी दाढ़ी और टोपी का सहारा ले कर मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश कर चुके हैं।
गौरतलब है कि अब तक मुसलमानों के विरोध में केवल बयान-बाजी का सिलसिला चल रहा था। अब ‘थ्यूरी’की जगह प्रैक्टिकल ने ले ली है। गोधरा के बाद गुजरात को प्रयोग की लेबारेट्री बनाया गया था। मोदी जानते हैं, थ्यूरी से कुछ नहीं होने वाला। इसलिए प्रयोग के तौर पर गुजरात पुलिस ने पफर्जी पुलिस वालों को मार्क ड्रिल में टोपी पहना कर मुसलमान बना कर प्रस्तुत किया। यह नाटक नहीं है जो गुजरात पुलिसकर्मियों द्वारा माफी मांग लेने पर पर्दा गिर जायेगा। यह 1925 के बाद के उसी नाटक की पटकथा है, जिसे आरएसएस बार-बार लिखते हुए असफल रहा है। अब गुजरात के नायक मोदी के साथ उसकी योजना इसे सफल बनाने की है। गुजरात इस बार भी प्रयोगशाला है। इस बार उसका मत है, देश के सारे मुसलमानों को आतंकी साबित करना।
दिल्ली छोटी पड़ गई है और गुजरात को दुहराया जा रहा है। अब दिल्ली सुनती ही नहीं। गुजरात केवल मुस्लिम विरोधियों और कट्टरपंथियों की सुनता है। दिल्ली सो गई है, गुजरात अपने पूरे तेवर में 800 वर्ष बाद की सलतनत को लाने का सपना देख रहा है। अब दिल्ली सलतनत नहीं हैं। यह है गुजरात सलतनत है।
तबस्सुम फ़ातिमा ने जामिया मीलिया से मनोविज्ञान में एमए किया. टेलिविजन प्रोड्युसर और फ्रीलांस राइटर के रूप में पहचान बनायी. अबत तक 100 से ज्यादा डॉक्युमेंटरी और 10 सीरियल पूरे. उर्दू शायरी में दखल रखने वाली तबस्सुम महिला अधिकारों के प्रति काफी संवेदनशील हैं. फिलहाल दिल्ली में रहती हैं.