कर्नाटक में मचे राजनीतिक भूचाल के बीच कांग्रेस व जेडीएस को लालू यादव के उस मंत्र से सीख लेनी चाहिए जिसे अपना कर उन्होंने नीतीश कुमार की सरकार को सात दिनों में धरासाई कर दिया था.
सन 2000 में बिहार में हुए उन विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय जनता दल सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. आरजेडी ने 124 सीटें जीती थीं. जबकि एनडीए के तहत लड़ रही थी तीन पार्टियों ने 122 सीटें हासिल की थीं. 324 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए 162 सीटों की आवश्यकता थी. नतीजे आने के बाद एनडीए के राज्य में सीएम चेहरे नीतीश कुमार तत्कालीन गवर्नर विनोद कुमार पांडे से जाकर मिले. उन्होंने गवर्नर के सामने झारखंड मुक्ति मोर्चा के 12 और 12 निर्दलीय विधायकों की सूची सौंपी. ये संख्या कुल मिलाकर भी 146 ही पहुंच रही थी.
अब गवर्नर का फैसला देखने लायक था. नीतीश की लिस्ट जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच रही थी. वहीं आरजेडी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. इसके बावजूद गवर्नर ने नीतीश कुमार को बहुमत साबित करने का न्योता दिया था. तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. जबकि आरजेडी ने भी यह दावा किया था कि उनके पास 162 विधायकों का समर्थन हासिल है. उन्हें कांग्रेस, सीपीआई और सीपीआई एम-एल का समर्थन हासिल था. लेकिन मौका तो नीतीश कुमार को ही दिया गया.
आगे क्या हुआ ?
नीतीश कुमार ने पद की शपथ तो ले ली लेकिन बहुमत के लिए जरूरी 16 विधायकों का इंतजाम वो नहीं कर पाए. इसका कारण थे लालू प्रसाद यादव. उन्होंने अपने विधायकों को अपने ही आवास पर इत्मिनान के साथ रखा। यानी लालू यादव ने अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास एनडीए को करा दिया था. उन्होंने बता दिया था कि उनका एक भी विधायक उनकी इच्छा के विरुद्ध तोड़ा नहीं जा सकता.
फिर किसकी सरकार? कौन बना ‘सिकंदर’
शपथ लेने के ठीक एक सप्ताह बाद नीतीश कुमार को इस्तीफा देना पड़ा. 11 मार्च 2000 को राबड़ी देवी एक बार फिर बिहार की सीएम बनी थीं. लालू यादव केंद्र की भाजपाई सरकार के सामने झुकने को तैयार नहीं हुए थे. उन्होंने एनडीए को हार का स्वाद चखाया था.
तो जेडीएस-कांग्रेस को लालू से सीखना चाहिए?
कर्नाटक की हालिया स्थिति भी 2000 के बिहार से अलग नहीं है. भले ही येदियुरप्पा ने शपथ ले ली है लेकिन जादुई आंकड़ा छूना तभी संभव है जब जेडीएस या कांग्रेस टूटे. ऐसे में कुमारास्वामी और सिद्धारमैया अगर इस प्रकरण से कुछ सीख पाएं तो शायद 15 दिनों बाद कर्नाटक में वो अपनी सरकार बना पाएंगे.
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