बिहार में होने वाले क्राइम की चर्चा देश भर में है. पुलिस आलोचना की जद में है. जांबाज अफसर दरकिनार हैं. तो क्या विकल्प है पुलिस के पास?
विनायक विजेता
गौरतलब है कि वर्ष 2005 से 2013 तक बिहार की पुलिसिंग व्यवस्था और पुलिस अधिकारियों में अपराध और अपराधी के प्रति ऐसा सामंजस्य था कि जमानत मिलने के बाद कई दुर्दान्त अपराधियों ने ‘गंगा लाभ’ के भय से बिहार ही छोड़ दिया था।
पूर्व सांसद शहाबुद्दीन का खास शूटर माने जाने वाला तथा पटना में पत्रकार कुणाल की दिनदहाड़े हत्या करने वाला दुर्दान्त अपराधी मैनपुरा निवासी सुल्तान मियां सहित कई ऐसे ऐसे अपराधी जो उस दौर में रहस्यमय ढंग से लापता हो गए जिनका आजतक पता नहीं चल सका।
कहां गये बहादुर अफसर
उस दौर में राजधानी पटना के थानों में रमाकांत प्रसाद, अभय नारायण सिंह, अजय कुमार, सुनील कुमार सरीखे आधादर्जन ऐसे थानेदार पदस्थापित थे जिनका खौफ अपराधियों के सिर चढ़कर बोलता था। इन थानेदारों ने अपने कार्यकाल में अपहरण और हत्या के कई जटिल मामले को तो सुलझाया ही रमाकांत प्रसाद सरीखे थोनदार ने मुटभेड़ में पटना में जहां मोकामा के कुख्यात अुन्नी सिंह को मार गिराया वहीं झारखंड से अपृह्त कर लाए गए एक व्यवसायी को न्यू बाइपास के पास अपहर्ताओं से हुए मुटभेड़ के बाद सुरक्षित मुक्त कराते हुए अपहर्ता गिरोह के सरगना को मार गिराया था।
क्रिमिनल्स बनाम क्रिमिनल्स
तत्कालीन एसएसपी कुंदन कृष्णन और उनके बाद आए अमित कुमार के उस दौर में सभी थानों के थानेदारों के बीच काफी बेहतर आपसी सामंजस्य और गोपनीय सूचनाओं का आदान प्रदान होता था जिसका अभी घोर अभव दिख रहा है। उस दौर में अपराधियों के बीच पुलिस की एक गुप्त कार्रवाई ‘गंगा लाभ’ का भी भय बना रहता था। कुख्यात सुल्तान मियां की तरह ही मोकामा का कुख्यात कमली सिंह व उसका सहयोगी रामू रजक, फुलवारी का कुख्यात नवाब मियां, दीघा का कुख्यात पोंगा सहित एक दर्जन ऐसे अपराधी उस दौर में या तो पुलिस मुटभेड़ में मारे गए या फिर ‘गंगा लाभ’ करा दिए गए।
पटना पुलिस ने अपराधी गिरोहों के बीच फुट डालकर अपराधियों से ही अपराधी को मरवाने की एक गुप्त मुहिम भी चलाई थी। इस मुहिम में भी पुलिस को काफी सफलता मिली हालांकि इस गुप्त ऑपरेशन में विरोधी अपराधियों द्वारा पुलिस के कई मुखबिर भी मारे गाए। इस मुहिम में दीघा निवासी रंजीत मुखिया, अशोक गुप्ता, मैनपुरा निवासी चांदी लाल, दिल्ली में मारा गया गुड्डू शर्मा, बड़हिया में मारा गया मुकेश शर्मा व कुख्यात दीनानाथ क्रांति सरीखे अपराधियों का नाम है।
उस दौर में जिन थानेदारों का खौफ था वैसे सभी अनुभवी थानेदार आज डीएसपी पद पर विराजमान तो हैं पर संटिंग पोस्ट पर। अगर सरकार अपराध प्रभावित जिला मुख्यालयों में इनकी पोस्टिंग कर इनकी सेवा ले तो काफी हद तक अपराध पर काबू पाया जा सकता है अन्यथा अपराधियों में पुलिसिया खौफ पैदा करने के लिए एक मात्र विकल्प फिर ‘गंगा लाभ’ ही बच जाता है। राजधानी पटना सहित बिहार में जिस तरह अचानक , बैंक लूट, हत्या, अपहरण और रंगदारी की घटनाएं बढ़ी हैं उससे राजय के मुखिया नीतीश कुमार भी आहत और पुलिस अधिकारियों के प्रति अप्रसन्न हैं। अगर उनकी यही अप्रसन्नता कायम रही तो निकट भविष्य में ऊपर से नीचे तक के कई आईपीएस अधिकारियों का सामुहिक तबादला हो सकता है जिसकी पहली गाज मुजफ्फरपुर के एसएसपी विवेक कुमार पर गिर सकती है।