ऐसे समय में जब बिहार में कानून व्यवस्था गंभीर चुनौती है, गृह विभाग पुलिस-पब्लिक अनुपात बढ़ा कर हालात सुधारने की कोशिश में जुटी है पर विगत दो वर्षों में राष्ट्रीय अनुपात के करीब पहुंचने के बजाये बिहार में यह खाई और बढ़ी है.
अनिता गौतम
हालांकि राज्य पुलिस मुख्यालय ने दस हजार कांस्टेबुल बहाल करने का प्रस्ताव राज्य रकार को भेजा है.
डीजीपी अभ्यानंद की चिंता यह है कि बिहार में पुलिस-पब्लिक का अनुपात केंद्रीय अनुपात से काफी कम होने के कारण कानून व्यवस्था की स्थिति गंभी बनी हुई है.
फिलहाल पुलिस पब्लिक का राष्ट्रीय अनुपात प्रति एक लाख लोगों पर 176 पुलिसकर्मी है, जबकि बिहार में यह अनुपात काफी पीछे यानी एक लाख लोगों पर महज 88 पुलिसकर्मी है.
दो वर्ष पहले जब राज्य के डीजीपी नीलमणि थे तो उन्होंने दावा किया था बिहार में पुलिस-पब्लिक अनुपात प्रति एक लाख पर 80 है. तब उस समय राष्ट्रीय अनुपात एक लाख लोगों पर 145 पुलिस कमर्मियों का था. यानी दो वर्षों में यह खाई घटने के बजाये बिहार में बढ़ी ही है.
नीलमणि ने तब दावा किया था कि वह 2011 में 45 हजार पुलिसकर्मी और 9500 सबइंस्पेक्टरों की बहाली करेंगे.पर उनके कार्यकाल में यह संभव नहीं हो सका.अब देखना है कि मौजूदा डीजीपी के कार्यकाल में क्या स्थिति रहती है.
पुलिस मुख्यालय की सीमा
हालांकि पुलिस मुख्यालय प्रत्यक्ष रूप से पुलिस की बहाली की जिम्मेदार नहीं होता. उसे राज्य सरकार की हरी झंडी का इंतजार करना पड़ता है.
हालांकि इस लम्बे अनुपातिक गैप को पाटना बिहार सरकार के लिए इतना आसान भी नहीं है.राष्ट्रीय अनुपात को प्राप्त करने के लिए राज्य सरकार को कम से कम 60 हजार पुलिसकर्मियों की बहाली करनी होगी. खुद पुलिस महकमा मानता है कि एक साल में दस हजार बहालियां की जाये तो राष्ट्रीय अनुपात को प्राप्त करने में छह साल लग जायेंगे.हालांकि लगातार छह सालों तक दस-दस हजार बहालियां व्यावहारिक रूप से संभव भी नहीं है.
खास तौर पर तब जब चुनावों के बाद सरकार की स्थितियों के बार में कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता.
दूसरा सवाल यह भी है कि क्या राज्य सरकार अगर नियमित बहालियां करती भी है तो क्या वह इतना आर्थिक बोझ उठाने में सक्षम है? एक अनुमान के अनुसार इतनी बहलियां करने पर राज्य सरकार पर सालाना चार सौ करोड़ रुपये का बोझ प्रति वर्ष बढ़ता जायेगा.
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