कांग्रेस और मनमोहन सरकार ने सीबीआई को आजाद करने को तैयार हैं. इतना ही नहीं सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा के कारण सरकार की जो किरकिरी हुई है उस से कांग्रेस समर्थक, सिन्हा को हर तरफ से घेरने में जुट गए हैं. रेल भवन में तो जबरदस्त गुस्सा है. उन्हें घूसखोर बताया जा रहा है.
देशपाल सिंह पंवार, दिल्ली से
सरकार ने कुछ दिन पहले सीबीआई को स्वायत्ता देने के मसले पर जीओएम बनाया है.सुप्रीम कोर्ट का भी दबाव है। दबाव में भी फायदे की राजनीति तलाश ली जाती है. कांग्रेस के थिंक टैंक भले ही खुलेआम केंद्र में वापसी का दावा करें लेकिन कहीं ना कहीं जमीन तो हिलती सबको नजर आ रही है.. यही फायदे का केंद्र बिंदु है. थिंक टैंक ने भी सीबीआई को जल्दी ही पिंजरे से बाहर करने की तैयारी कर ली है. रणनीतिकारोँ का मानना है कि अगर कांग्रेस फिर सत्ता में आई तो भी तोते की रट से निपटने का रास्ता मिल जाएगा और अगर नहीं आई तो फिर राजग तथा खासकर बीजेपी नेताओं को ही सीबीआई की आजादी का नुकसान झेलना होगा. सीबीआई का दुरुपयोग या सदुपयोग फिर बीजेपी नहीं कर पाएगी. इसी वजह से कांग्रेस इसी साल सर्दी तक तोते को पिंजरे से आजाद करने की तैयारी में है.
कांग्रेसी रणनीतिकारों को ये भी लगता है कि खुद ऐसा समय आने वाला है जब बीजेपी ही सीबीआई की आजादी का विरोध करेगी. लालू, मुलायम और मायावती के अलावा कुछ अन्य नेता भी इसकी मुखालाफत कर सकते हैं. कांग्रेस से बस एक ही आवाज विरोध में उठी है. लंबे समय से दिज्विजय सिंह पावर से दूर हैं लेकिन 10 जनपथ के नजदीक. वो अमूमन वही बोलते हैं जो 10 जनपथ या तो उनसे बुलवाना चाहता है या ठीक उसका उल्टा 10 जनपथ को करना होता है. इससे जनमानस में यही संदेश जाता है कि कोई कुछ भी कहे लेकिन पार्टी और सरकार अपने ही रास्ते पर चलेगी.अब दिग्विजय सिंह ने सीबीआई को स्वायत्तता दिए जाने की बातों का विरोध किया और इस एजेंसी की जवाबदेही का मुद्दा उठाया. सिंह ने सोशल मीडिया ट्विटर पर पूछा कि सीबीआई में जांच अधिकारी अक्सर कोई इंस्पेक्टर या डिप्टी एसपी होता है, तो क्या हम उसे स्वायत्तता देना चाहेंगे और उसे किसी के प्रति जवाबदेह भी ना रखें. ट्विटर पर उन्होंने हाल ही में कहा था कि सीबीआई को तोता की संज्ञा देकर क्या हम अपनी संस्थाओं को नीचा नहीं दिखा रहे हैं?
घुसखोरी के आरोप
पुराने कानून मंत्री अश्विनी कुमार की वजह से जो सरकार की किरकिरी हुई है उससे सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा सरकार के भी निशाने पर हैं और साथ ही रेल भवन के भी. आरपीएफ महानिदेशक के रूप में जो उन्होंने कारनामे किए थे वो सब निकलकर बाहर आ रहे हैं. ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन ने आरोप लगाया है कि घूसखोरी उजागर करने के नाम पर सिन्हा आरपीएफ डीजी के रूप में हुए अपमान का बदला ले रहे हैं. उन्हें घूसखोरी के आरोपों में ही यहां से हटाया गया था. एसोसिएशन के महासचिव उमाशंकर झा ने प्रमाणों के साथ बताया कि उन्होंने तीन अगस्त 2012 को ही केंद्रीय सतर्कता आयुक्त को चिट्ठी लिखकर आगाह कर दिया था कि रंजीत सिन्हा अभी सीबीआइ निदेशक बने भी नहीं हैं, मगर आरपीएफ में उनके पुराने पिछलग्गू अधिकारी रेलभवन में सबको चेतावनी दे रहे हैं कि सीबीआइ डायरेक्टर बनते ही उन सभी लोगों को सबक सिखाएंगे, जिन्होंने उन्हें निकलवाने में भूमिका निभाई थी.
आरपीएफ एसोसिएशन की चिट्ठी
झा के मुताबिक, उन्होंने 28 अप्रैल 2010 को रेलमंत्री ममता बनर्जी से तत्कालीन आरपीएफ डीजी रंजीत सिन्हा व आइजी बीएस सिद्धू के भ्रष्टाचार की शिकायत की थी. ममता ने रेलवे बोर्ड में कार्यकारी निदेशक (सिक्युरिटी) नजरुल इस्लाम से जांच कराई थी. सीबीआइ सिद्धू के खिलाफ पहले से ही जांच कर रही थी. उसी जांच के आधार पर सिद्धू को उनके मूल काडर में भेज दिया गया था. आरपीएफ एसोसिएशन ने 20 जनवरी 2011 को रंजीत सिन्हा के खिलाफ मय प्रमाण 10 पेज की एक और तगड़ी शिकायत रेलमंत्री का भेजी. शिकायत सही पाई गई और अंतत: सिन्हा को भी 19 मई, 2011 को आरपीएफ से हटाकर कंपल्सरी वेटिंग में गृह मंत्रालय भेज दिया गया. मगर उल्टे उन्हें सीबीआइ निदेशक जैसे अहम पद पर बैठा दिया गया. झा के अनुसार, महेश कुमार, सिंगला व उसके सहयोगियों की भूमिका की जांच पर ध्यान देने के बजाय सीबीआइ अनावश्यक रूप से आरपीएफ में गड़बडिय़ों की जांच की बात उठाकर मूल जांच से ध्यान बंटाने की कोशिश कर रही है. क्योंकि सिन्हा आरपीएफ के डीजी मेहता व मुझसे पुराना हिसाब चुकता करना चाहते हैं.
कुल मिलाकर जो सुर उठ रहे हैं उनका आश्य यही है कि सिन्हा भी दूध के धुले नहीं हैं.