जब भी लालू प्रसाद से जुड़े मामले विवादों का हिस्सा बनते हैं तब मीडिया का एक हिस्सा गठबंधन सरकार के टूट जाने की करीब-करीब घोषणा कर देता है. इंकम टैक्स के छापे की खबर के बाद जी मीडिया समेत अनेक चैनलों ने फिर यही भविष्यवाणी कर दी.

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डाट कॉम

इस बार मीडिया ने जो तर्क खोजे वह लालू प्रसाद के उस ट्विट निकाले गये जिसमें लालू ने कहा था कि भाजपा को नया अलायंस पार्टनर मुबारक हो. लालू के इस ट्विट को नीतीश कुमार के उस बयान से मिलाया गया जिसमें नीतीश ने बस एक दिन पहले कहा था कि भाजपा वाले आरोप( लालू पर) लगाते हैं तो उनकी सरकार केंद्र में है उन्हें अपनी एजेंसी से जांच करवानी चाहिए.

सचोने की बात है कि जब मीडिया ने लालू परिवार पर लगाये जा रहे आरोपों पर सवाल किया तो नीतीश क्या जवाब दे सकते थे. इसके अलावा और कोई उचित जवाब क्या हो सकता था.

 

नीतीश के इस बयान के दूसरे ही दिन केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाले इंकम टैक्स महकमें ने लालू प्रसाद के परिवार के फर्मों पर छापामारी कर दी. इंकम टैक्स की यह कार्वाई इतनी फुर्ती से हुई जिसे भाजपा और मीडिया के एक हिस्से ने इसे ऐसे रंग दिया जैसे नीतीश के कहने पर ही इंकम टैक्स ने कार्रवाई की. दर असल भाजपा सरकार ने तत्क्षण इंकम टैक्स से कार्वाई करा कर यह मैसेज देने की कोशिश की कि इंकम टैक्स ने नीतीश के बयान के बाद ही कार्वाई के लिए आगे आया.

दर असल मीडिया का बड़ा हिस्सा यह मनोकामना पाले हुए है कि भाजपा के साथ नीतीश को आ जाना चाहिए. दर असल भाजपा को पता है कि उसके लिए बिहार में जो सबसे बड़ी बाधा है, वह लालू प्रसाद ही हैं. वह चाहती भी यही है कि लालू से नीतीश अलग हो जायें और नीतीश को भाजपा समर्थन दे कर सीएम बनाये रखे. दर असल पिछले दो सालों में भाजपा ने कम से कम दो राज्यों में यही प्रयोग कर चुकी है. उसने यही प्रयोग उत्तराखंड में भी किया था. लेकिन उसे वहां मुहकी खानी पड़ी. मुंहकी ही नहीं  खानी पड़ी बल्कि उसे उत्तराखंड हाई कोर्ट के सामने बेइज्जती भी झेलनी पड़ी थी.

लेकिन बिहार में भाजपा और भाजपाई समर्थित मीडिया की हवा शाम होते होते निकल गयी. जद यू नेता केसी त्यागी ने बयान दे डाला कि जद यू के विचार से  मोदी के नेतृत्व वाले भाजपा का विचार नहीं मिलता. गठबंधन अटूट है.

रही बात लालू के भाजपा के नये अलायंस वाले बयान से, तो खुद लालू ने अपने ट्विट में स्पष्ट किया कि उसका गठबंधन इंकम टैक्स और सीबीआई से है.

लालू प्रशाद और खुद नीतीश कुमार को पता है कि गठबंधन टूटने के बाद न तो नीतीश का भला होगा और न ही लालू प्रसाद का. अगर गठबनंध टूटने की काल्पनिक स्थिति पर जरा गौर भी करें तो यह आसान नहीं है. बिहार में सरकार बनाने के लिए कम से कम 122 विधायकों का समर्थन चाहिए. नीतीश कुमार के पास 71 विधायक हैं. भाजपा के पास 53 हैं. दोनों दलों के विधायक मिल कर सरकार चला सकते हैं. लेकिन अगर नीतीश ने गठबंधन तोडने का आत्मघाती फैसला कर भी लिया तो लालू चुप नहीं बैठेंगे. वह न सिर्फ जद यू को तोड़ेंगे, बल्कि भाजपा के अनेक विधायोंको को भी अपने पक्ष में खीच लायेंगे. लालू के अपने 80 विधायक हैं. उन्हें कांग्रेस के पास 24 हैं. सात विधायक छोटे दलों के पास हैं. ऐसे में गठबंधन टूटता भी है तो जद यू को चैन से लालू रहने देंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है. हालांकि ये तमाम बातें काल्पनिक हैं. क्योंकि लालू और नीतीश की सरकार के दरकने की कोई संभवाना नहीं है.

वैसे मीडिया ने शराबबंदी, प्रकाश पर्व और दीगर अनेक मौकों पर गठबंधन के टूटने की भविष्यवाणी करता रहा है. पर सरकार चलती रही है. और फिलहल चलती रहेगी.

By Editor


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