तमाम उठापटक व सुलह की संभावना के बीच जेएनयू के दिनों से समाजवादी पार्टी का झंडा उठाने वाले और अखिलेश के स्कुली दिनों के सहपाठी विधान परिषद् सदस्यउदयबीर सिंह को समाजवादी पार्टी से निष्कासित कर दिये जाने की खबर से ऐसा लगता है कि अखिलेश यादव के खिलाफ मुलायम-शिवपाल की तल्खी अब चरम पर है।
निखिल आनंद
अब जो पारिवारिक व राजनीतिक द्वंद्व के बीच मर्यादा की पतली विभाजक रेखा है वो भी टूट चुकी है। समाजवाद की राजनीति में पत्र लिखना एक परम्परा है गुनाह नहीं फिर मुलायम सिंह को भी कई गाली देने लोग पार्टी में हैं, कई दल- बदलू व माफिया भी इसी पार्टी में हैं व लिये भी जा रहे हैं ऐसे में उदयवीर पर कार्रवायी अखिलेश के लिये अप्रत्यक्ष निर्देश व संदेश भी है।
इस मामले पर अखिलेश चुप रहकर आज्ञाकारी बने रहते है तो सिर्फ उनकी दुकान आगे बढ़ सकती है राजनीति नहीं और पापा-चाचा के साथ बने रहेंगे तो निपटाने की तैयारी भी पूरी हो चुकी है।
अब स्पष्ट है कि चुनाव के पहले टूटे या बाद में लेकिन समाजवादी पार्टी का टूटना तय हैं। बयानों पर मत जाइये अंदरखाने में भयंकर गुटबाजी और खेमेबंदी चल रही है।
मुलायम सिंह उम्र के ढलान पर या यूँ कहें कि राजनीतिक अवसान की ओर अग्रसर हैं तो सभी भावनात्मक शोषण कर अपना हिस्सा बटोर लेना चाह रहे हैं जिसमें शातिर दिमाग शिवपाल सिंह और महा शातिर दिमाग रामगोपाल सबसे आगे हैं वैसे भले ही कोई ऐक्टिव और कोई पैसिव दिख रहा हो। परदे के पीछे मुलायम सिंह को भावुकता और मोहपाश में कुछ अन्य लोगों ने भी जकड़ रखा है।
इस पूरे खेल में अखिलेश की स्थिति “ऑड- वन-आउट” की तरह है जो अपने नीजी- पारिवारिक व राजनीतिक वजूद को बचाने की फिराक मे है। अखिलेश ने पाँच साल बतौर मुख्यमंत्री समाजवाद के नाम पर ठीक- ठाक से शासन भले चला लिया हो लेकिन सामाजिक न्याय व भागीदारी के वैचारिक अगुआ के तौर पर बहुत मुखर नही रहे हैं और इसका प्रतिबिंबन संविधान के नियमों के तहत भी सत्ता, व्यवस्था व नौकरियों में कर दिखाने में सफल भी नहीं रहे हैं।
दूसरी बात की अखिलेश को राजनीति में नारे लगाने वाली भीड़ से अलग नयी पीढ़ी की अपनी वैचारिक टीम बनानी पड़ेगी और 4- केजी के मुख्यमंत्री आवास पर हावी लोगों व अन्य चाटुकारों- चापलूसों से अलग सही लोगों की भी पहचान करनी पड़ेगी। बड़ी राजनीतिक लाइन तो विचारधारा की बुनियाद पर ही खींची जायगी जिस लिहाज से भी अखिलेश को खुद को पहचानना व गढ़ना पड़ेगा। फिलहाल मुलायम खानदान में अखिलेश को छोड़कर किसी का भी भविष्य दिखता नही है और अखिलेश के लिये भी अकेले बूते नेतृत्व के स्तर पर उभरना बड़ी चुनौती है।