यह दूसरी बार है जब मुख्यमंत्री मांझी के हटाये जाने के मीडिया के एक वर्ग की तुक्केबाजी महज अफवाह साबित हुई. इससे मीडिया की विश्वसनीयता पर आघात पहुचता है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है.nitish.manjhi

इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन

चार जनवरी को फिर वही दोहराया गया. ऐसा ही पिछले महीने भी हुआ था. चार जनवरी को मीडिया के एक वर्ग ने यह खबर चलायी कि मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से त्यागपत्र लिया जायेगा और नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे. कुछ ने तो वह तारीख भी बता दी जिस दिन नीतीश कुमार शपथ लेते.  यह बताया गया कि जद यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पटना पहुंच कर इस बात की जिम्मेदारी ले चुके हैं कि वह जीतन राम मांझी को पद छोड़ने के लिए तैयार करेंगे.लेकिन रात होते होते ऐसी खबर अफवाह साबित हुई. शरद यादव ने साफ कह दिया कि न तो मांझी को हटाने का कोई एजेंडा है और न ही नीतीश कुमार पर सीएम बनने का कोई दबाव है.

इसी तरह पिछले महीने जब नीतीश कुमार दिल्ली गये तो एक लोकल चैनल ने यह खबर प्रसारित की कि जीतन राम मांझी को हटाने की औपचारिकता पूरी हो गयी है. इस खबर के बाद कई मीडिया इसी रौ में बहने लगे. लेकिन दो दिन के अंदर ही लालू, नीतीश और शरद ने एक स्वर में इस खबर को बेतुका बता कर मीडिया को कटघरे में खड़ा कर दिया. चार जनवरी को फिर वही  हुआ. रात होते होते शरद ने हालात को स्पष्ट कर दिया.

 

आइए देखें वह तीन कारण जो ऐसी खबरों के लिए जिम्मेदार हैं.

पहला कारण

पत्रकारिता में स्पेकुलेशन कई बार खतरनाक साबित होता है. ऐसे में खबरों की होड़ और टीआरपी के चक्कर में कुछ उत्साही पत्रकार या तो  अपना विवेक खो देते हैं या वे निजी एजेंडे को पत्रकारिता का एजेंडा मानने लगते हैं. कई बार चतुर नेता मीडिया की इस कमजोरी को खूब समझते हैं और वह मीडिया का यूज करने में सफल हो जाते हैं. मांझी को हटाये जाने की अफवाह में भी यह कारक काफी महत्वपूर्ण रहा. अब  सवाल यह किया जाने लगा है कि क्या कुछ पत्रकार भी इस एजेंडे का हिस्सा तो नहीं जो मांझी के हटाने के नाम पर जद यू में घमासान कराना चाहते हैं?

दूसरा कारण

यह सच है कि जनता दल यू के एक वर्ग में मुख्यमंत्री मांझी के प्रति सहानुभूति नहीं है. बार बार वे मांझी से टकराव मोल लेते हैं और वे मीडिया को इस्तेमाल करने के फिराक में वरगलाने की कोशिश करते हैं. ऐसे में फिर बात वहीं आ जाती है कि आखिर कुछ पत्रकार उनके बहकावे में आ क्यों जाते हैं, क्या वे ऐसी खबरें फैलाने के एजेंडा का हिस्सा हैं. लेकिन इसमें महत्वपूर्ण यह भी है कि ऐसी अफवाहों का जद यू का टॉप नेतृत्व भी खूब दोहन करता है. इस खबर के बहाने वे मांझी को तनाव में ला देते हैं और उन पर नकेल डालने की कोशिश करते हैं. मांझी के बयानों से इसकी पुष्टि भी होती है जो कई बार कह चुके हैं कि मैं कब तक इस पद पर हूं मुझे नहीं पता.

तीसरा कारण

यह तीसरा कारक विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक बयानों का है. वैसे विपक्षी दलों का यह काम भी है कि वह राजनीतिक बयान दे कर अपना काम निकाले. भाजपा नेता सुशील मोदी ने पत्रकारों से कहा कि नीतीश कुमार सत्ता के बिना, ‘बिन जल मछली’ की तरह हैं और वह मांझी को हटा कर 15 फरवरी को बिहार का सीएम बनना चाहते हैं. उन्होंने मांझी को यहां तक सलाह दे दी कि उन्हें अगर हटाया जाता है तो उन्हें हटने के बजाये सरकार को भंग करने की सिफारिश करनी चाहिए, बदले में उन्हें कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहने का मौका मिल जायेगा. लेकिन मोदी के ऐसे बयानों के पीछे उनके राजनीतिक पक्ष को अगर मीडिया नजर अंदाज करता है तो यह मीडिया की कमजोरी है, न की सुशील मोदी की.

कुल मिला कर ऐसी खबरें चलाने से मीडिया ही कटघरे में आता है.

By Editor

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