ऐसे समय में जब वामपंथी राजनीति को कुछ लोग पतन का पर्याय मानने लगे थे, त्रिपुरा में सीपीएम के नेतृत्व वाली वामपंथी गठबंधन ने लगातार पांचवीं बार दो तिहाई बहुमत प्राप्त करके वैसे लोगों को गलत साबित कर दिया है.
खासकर पश्चिम बंगाल में बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार की हार के के बाद वाम राजनीति सर गंभीर सवाल उठाये जाने लगे थे.
त्रिपुरा में सीपीएम ने 60 में से अकेल 45 सीटें हासिल की हैं जबकि उसकी सहयोगी सीपीआई को एक सीट मिली है. सच पुछिए तो गुजरात की भाजपा सरकार की वापसी से किसी मायने में वामपंथियों की त्रिपुरा में वापसी को कम करके नहीं देखा जा सकता.
वामपंथियों की राज्य में 1993 से अब तक किसी ने उखाड़ फेकने की जुर्रत नहीं दिखायी. यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि जब पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी वहां प्रचार के लिए गये तो उन्होंने कहा था कि कम्युनिस्टों को देश से बाहर कर दिया जायेगा. राहुल का यह बयान बढ़बोला साबित हुआ. उन्हीं की पार्टी यहां बुरी तरह विफल साबित हुई है.
कांग्रेस को यहां फिर से विपक्ष में ही बैठना पड़ेगा. क्योंकि राज्य की जनता ने मानिक सरकार के नेतृत्व में फिर से भरोसा जताया है. मानिक सरकार की सरकार में वित्त मंत्री रहे बादल चौधरी, जेल मंत्री मनिंद्र रेंग और कृषि मंत्री अघोरे डब्बरमा भी चुनाव जीत गये हैं.