राजनीतिक सत्ता सामाजिक और आर्थिक सशक्तीकरण का मजबूत व कारगर हथियार है, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दलित व अतिपिछड़ों को साजिश के तहत राजनीतिक सत्ता से वंचित करना चाहते हैं। लोकसभा चुनाव में दलितों व अतिपिछड़ों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया था। इसकी सजा नीतीश कानून बनाकर देना चाहते हैं। दलित व अतिपिछड़ों की बड़ी आबादी को चुनाव लड़ने से वंचित करना चाहते हैं।
वीरेंद्र यादव
‘शौचालय’ में समा जाएगी 70 फीसदी आबादी
15वीं विधान सभा के अंतिम सत्र के अंतिम दिन विधानमंडल ने लोकतंत्र को अपाहिज करने वाला बिहार पंचायत राज (संशोधन) विधेयक, 2015 को ध्वनिमत से पारित कर दिया। यदि इस विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी मिल गयी तो राज्य की 70 फीसदी आबादी पंचायत चुनाव लड़ने से वंचित हो जाएगी। इस विधेयक में किए गए प्रावधान के तहत जिनके घर में 1 जनवरी, 2016 तक शौचालय नहीं होगा, वे पंचायत चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, वे पंचायत चुनाव के अयोग्य माने जाएंगे। हाल ही में हुए जातीय जनगणना के अनुसार, राज्य में 70 फीदसी परिवार के घरों में शौचालय नहीं है। इसलिए वे पंचायत चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाएंगे। यानी 70 फीसदी आबादी ‘शौचालय’ में समा जाएगी।
क्या है सरकारी साजिश
सरकार ने पंचायती राज अधिनियम 2006 की धारा 136 की उपधारा में एक में नया संशोधन जोड़ा है। यह धारा पंचायत चुनाव की अयोग्यता से जुड़ी हुई है। इसमें पहले से अयोग्यता के दस कारणों का उल्लेख किया गया है। बिहार पंचायत राज (संशोधन) विधेयक, 2015 के तहत इसमें अयोग्यता का 11 वां कारण गिनाया गया है, जिसकी क्रम संख्या (ट) बताया गया है। विधेयक में कहा गया है- ‘पंचायत क्षेत्र में निवास करने वाले ऐसे व्यक्तिक गृहस्थ परिवार का सदस्य है, जिसने 1 जनवरी, 16 तक की अवधि या उसके पूर्व अपने घर में कम-से-कम एक शौचालय का निर्माण नहीं किया है।’ उम्मीदवारों को नामांकन के समय शपथ पत्र भी देना होगा कि उनके घर में शौचालय है।
राज्यपाल ही बचा सकते हैं लोकतंत्र
अब सवाल यह है कि सरकार मानती है कि 70 फीसदी घरों में शौचालय नहीं है यानी 70 फीसदी परिवार सीधे-सीधे चुनाव लड़ने से वंचित हो जाएंगे। यह लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है। लोकतांत्रिक संस्थाओं को अपाहिज बनाने की साजिश है। राज्यपाल खुद दलित परिवार से आते हैं और लगभग सौ फीसदी ग्रामीण दलित परिवारों के घरों में शौचालय नहीं है। दरअसल नीतीश कुमार एक साजिश के तहत दलित व अतिपिछड़ा समाज के बड़े हिस्सों को चुनावी राजनीति से वंचित करना चाहती है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा इस विधेयक का विरोध नहीं कर नीतीश की साजिश का हिस्सा बन गयी है। अब राज्यपाल ही बिहार में लोकतंत्र बचा सकते हैं और सरकारी साजिश से जनता को बचा सकते हैं। यदि राज्यपाल संशोधन विधेयक को नामंजूर कर दें, तभी 70 फीसदी आबादी का अधिकार सुरक्षित रहेगा। स्वच्छता के नाम पर लोकतंत्र के ‘सफाये’ की साजिश का विरोध हर व्यक्ति को करना होगा, तभी बचेंगी पंचायती राज संस्थाएं और लोकतंत्र की आत्मा।
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