यह दलितों के स्वाभिमान को झकझोर कर चरम पर पहुंचा देने का दृश्य था. कृष्ण मेमोरियल हॉल की दो हजार क्षमता का यह सभागार खचाखच भरा था और इतने ही लोग या तो बाहर घूमते रहे या अंदर खड़े रहे.
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
पूरे सम्मेलन में दलित स्वाभिमान और नीतिश की मुखालफत के अलावा इस सम्मेलन में कुछ भी दिखा. तो क्या दलित सिर्स्वाफ भिमान के नाम पर पूरी जंग जीतने निकले जीतन राम मांझी क्या कुछ कर पायेंगे?
मांझी के नेतृत्व में उनके राजपूत सिपहलसालार नरेंद्र सिंह, अपने दोनों पुत्रों, पिछड़ी जाति के शकुनी चौधरी अपने पुत्र और भूमिहार जाति के जगदीश शर्मा अपने पुत्र राहुल के संग तो मौजूद थे ही, अति पिछड़ी जाति के भीम सिंह, पिछड़ी जाति के वृशिण पटेल, मुस्लिम चेहरा शाहिद अली खान समेत तमाम लोगों ने सिर्फ एक बात पर जोर दिया- ‘दलित के बेटे को मुख्यमंत्री पद से अपमानित कर के नीतीश ने हटा दिया’.
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मांझी ने जहां एक घंटे के भाषण में इसे एक दलित के अपमान से जोड़ा तो शकुनी ने लालू-नीतीश को इस देश का सबसे बड़ा बहुरूपिया करार देते हुए उन्हें चूनौती दी कि यह राज्य दलितों के अपमान को अब बर्दाश्त नहीं कर सकता. नरेंद्र सिंह ने इस पूरी लड़ाई में खुद की और अपने दो एमएलए बेटों सुमित और अजय प्रताप की कुर्बानी करार देते हए कहा कि दलितों पिछड़ों के स्वाभिमान की रक्षा के लिए वे मैदान में हैं.
मांझी गुट के तमाम नेता एक मंच पर जुटे और इस सम्मेलन का नाम दिया कार्यकर्ता स्वाभिमान सम्मेलन. लेकिन इस सम्मेलन में जैसे स्वाभिमान की तमाम परिभाषायें दलितों तक ही सीमित रही. भले ही इस सम्मेलन के मार्फत यह आभास दिया गया कि मांझी के नेतृत्व में एक राजनीतिक मंच अगला चुनाव लड़ेगा. इस मंच का फिलहाल नाम हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा रखा गया है लेकिन इस पूरे सम्मेलन कमें नीतीश-लालू की खिलाफ दलित स्वाभिमान के अलावा जैसे कोई मुद्दा ही नहीं दिखा.
इस छह घंटे तक चलने वाले सम्मेलन में जैसे किसी भी नेता के सामने नीतीश-लालू के अलावा किसी का नाम लेना वर्जित सा लगा. भाजपा और नरेंद्र मोदी का नाम संदर्भों को अलावा कहीं नहीं लिया गया. शकुनी और महाचंद्र प्रसाद ने बस इतना भर कहा कि नरेंद्र मोदी से जीतन राम मिलने गये तो उन्हें नीतीश ने साम्प्रदायिक बता कर बदनाम करने की कोशिश की लेकिन खुद नीतीश एक दिन पहले मोदी से मुलाकात की और संग-संग मुस्कुराये-बतियाये. इस दौरान भीम सिंह ने अपने मोबाइल की वह तस्वीर भी लोगों को दिखायी जिसमें नीतीश मोदी के संग, लालू प्रसाद की बेटी की शादी में मौजूद दिख रहे हैं.
इस पूरे सम्मेलन के दौरान नीतीश-लालू न सिर्फ बिहार की समस्याओं के प्रतीक के रूप में पेश किये गये बल्कि राजनीतिक प्रहार का अंतिम लक्ष्य भी वही दिखे. मांझी के 20-25 सहयोगियों में से किसी एक ने भी भाजपा के पक्ष या विपक्ष में एक शब्द न कह कर भले ही पहले से तयशुदा किसी रणनीति पर काम किया हो, लेकिन यह सवाल आने वाले दिनों में पूछा जायेगा कि मांझी के संघर्ष में भाजपा और वाम दलों के लिए उनकी पोजिशन क्या होगी.
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