कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी 2004 में संप्रग की नेता के रूप में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने के खिलाफ थे। उनको भय था कि दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की तरह प्रधानमंत्री बनने पर सोनिया गांधी की भी हत्या की जा सकती है। इस बात का खुलासा पूर्व केंद्रीय मंत्री और गांधी परिवार के करीबी रहे नटवर सिंह ने अपनी पुस्तक में किया है।
पूर्व विदेश मंत्री के नटवर सिंह ने दावा किया कि 2004 में सोनिया गांधी ने अपने बेटे राहुल गांधी के कड़े एतराज के बाद प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया। राहुल ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उनको डर था कि अगर वह पद स्वीकार लेती हैं, तो उनके पिता और दादी की तरह उनकी भी हत्या कर दी जाएगी। एक समय गांधी परिवार के दोस्त माने जाने वाले सिंह (83) ने 2008 में कांग्रेस छोड़ दी थी। इराक के अनाज के बदले तेल घोटाले की पृष्ठभूमि में 2005 में संप्रग 1 से उन्होंने इस्तीफा दिया था। उन्होंने दावा किया है कि अंतरात्मा की आवाज के कारण सोनिया ने इससे मना नहीं किया, बल्कि एक समय वह प्रधानमंत्री पद संभालने के बारे में कह चुकी थीं।
उन्होंने एक टीवी कार्यक्रम में दावा किया कि अपनी आत्मकथा में वह इस खास घटनाक्रम का उल्लेख नहीं करें, यह आग्रह करने कांग्रेस अध्यक्ष अपनी बेटी प्रियंका गांधी के साथ 7 मई को उनके आवास पर आयीं थी, लेकिन उन्होंने तथ्य का खुलासा करने का फैसला किया, क्योंकि वे सच बताना चाहते थे। उनकी पुस्तक ‘वन लाइफ इज नॉट इनफ : एन आटोबायोग्राफी’ शीर्षक वाली किताब जल्द ही बाजार में आने वाली है।
नटवर सिंह ने कहा कि राहुल अपनी मां के प्रधानमंत्री बनने के पूरी तरह खिलाफ थे। उन्होंने कहा कि उनके पिता और दादी की तरह उनकी हत्या कर दी जाएगी और एक पुत्र होने के नाते वह उन्हें प्रधानमंत्री बनने नहीं देंगे। वह दृढ़ता से अड़े हुए थे। उन्होंने 18 मई, 2004 को हुयी एक बैठक का जिक्र करते हुए इस घटना का उल्लेख किया, जिसमें मनमोहन सिंह, गांधी परिवार के दोस्त सुमन दुबे, प्रियंका और वह मौजूद थे। बाद में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।उन्होंने कहा कि राहुल के एतराज के बारे में प्रियंका ने उन लोगों को वाकिफ कराया। उन्होंने कहा कि एक बेटे के तौर पर राहुल को पूरे अंक जाते हैं। राहुल उस समय 34 साल के थे।
श्री सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू के उस दावे का समर्थन किया कि पीएमओ में रहे पुलक चटर्जी अहम सरकारी फाइल सोनिया के पास ले जाते थे। उन्होंने कहा कि इस पर विरोध का कोई सवाल ही नहीं था, क्योंकि वह सर्वोच्च नेता थीं। नटवर सिंह ने यह भी खुलासा किया कि 1991 में प्रधानमंत्री के तौर पर सोनिया की पहली पसंद तत्कालीन उपराष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा थे, लेकिन बाद में राष्ट्रपति बनने वाले शर्मा ने अपने खराब स्वास्थ्य के कारण इस पेशकश को ठुकरा दिया था। उन्होंने कहा कि इसके बाद उन्होंने पीवी नरसिंह राव का चुनाव किया, जिनके साथ उनके कभी गर्मजोशी भरे संबंध नहीं रहे।
यह पूछे जाने पर कि वर्ष 2004 में भाजपा नेतत्व वाले राजग को हराकर कांग्रेस की अगुवाई वाले संप्रग के सत्ता में आने के बाद यह पूरी तरह सोनिया पर छोड़ दिया जाता तो क्या वह प्रधानमंत्री पद स्वीकार कर लेतीं, सिंह ने कहा कि इसका जवाब देना कठिन है। गांधी परिवार द्वारा उनके साथ के बर्ताव को लेकर कड़वाहट और प्रतिशोध के आरोपों को खारिज करते हुए सिंह ने कहा कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से सोनिया के खिलाफ कभी एक शब्द नहीं कहा, लेकिन तथ्य बताना महत्वपूर्ण है। न्होंने कहा कि वह एक सार्वजनिक शख्सियत हैं। वह भारत की सबसे महत्वपूर्ण नेता हैं, वह हरेक जीवनी लेखक का ख्वाब हैं। वह एक ऐतिहासिक शख्सियत हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी हस्तियों की कोई निजता नहीं होती।