कांग्रेस में राजनीति की बिसात पर जिस तरह गोटियां चलाई गई हैं, अगर कोई बहुत बड़ा मामला नहीं हुआ तो ये तय है कि दिग्विजय सिंह लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और वो भी छत्तीसगढ़ की दुर्ग से.
देशपाल सिंह पंवार
उनके चहेते भी इस बात के संकेत दे रहे हैं और साथ ही ज्योतिषी भी। कांग्रेस के अंदरखाने से ही ये खबर छनकर आ रही है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा और दिग्विजय सिंह ने मिलकर जो रणनीति तैयार की है उस पर अमल शुरु हो गया है। इसी के तहत दिग्विजय सिंह भी चुनाव लड़ेंगे और मोतीलाल वोरा के बेटे भी।
इसी एक्शन प्लान के तहत नक्सली हमले के बाद मनचाहे तरीके से कांग्रेस को चलाने के लिए डा चरणदास महंत को प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष भी बनवाया गया है और साथ ही बोनस में उनकी केंद्रीय मंत्री की गद्दी को सुरक्षित रखने की गारंटी भी दी गई है
जोगी और दिग्विजय की अदावत
छत्तीसगढ़ की राजनीति में अजीत जोगी और दिग्विजय सिंह की अदावत पुरानी है। हाल ही में नक्सली हमले के बाद शोक सभा में भी दोनों नेताओं ने एक दूजे को जमकर सुनाई थी। तब जोगी ने कहा था कि छत्तीसगढ़ के कांग्रेस कार्यकर्ता व नेता यह उम्मीद न करें कि कोई प्रतापगढ़ या फतेहगढ़ का व्यक्ति आकर यहां कांग्रेस को सत्ता में ला देगा। उन्होंने कहा था कि पटेल व अन्य नेताओं ने छत्तीसगढ़ महतारी व कांग्रेस के लिए बलिदान दिया है। उस बलिदान का छत्तीसगढिय़ों को सम्मान करना होगा। जोगी ने कहा कि हमें सत्ता चाहिए पर अपने लिए नहीं, कुर्सी या पावर के लिए भी नहीं, प्रदेश के ढाई करोड़ जनता के लिए सत्ता चाहिए। सत्ता कांग्रेस के स्थानीय कार्यकताओं के परिश्रम से ही मिल सकती है न कि बाहरी नेताओं के दौरा करने से मिलेगी।
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दिग्विजय सिंह भी पीछे नहीं रहे थे। नकहा कि उदय मुदलियार भी मूल रूप से तमिलनाडु के थे पर जीवन भर उन्होंने राजनांदगांव का प्रतिनिधित्व किया व छत्तीसगढ़ की सेवा की। ऐसे में किसी को बाहरी नहीं कहा जा सकता।
कांग्रेस को मजबूत करने की बजाय इस तरह की खेमेबंदी को सरे राह जिस तरह उछाला जा रहा है उसी की वजह से कांग्रेस की आए दिन छीछालेदर होती रहती है। केशकाल के नतीजों के बाद ही पार्टी को रायपुर और दिल्ली से हांकने वाला ये कैंप इसी तरह के सुर निकाल रहा है।
निजी लड़ाई
कांग्रेस के विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक इसका सबसे बड़ा कारण पार्टी की मजबूती से ज्यादा व्यक्तिगत लाभ का है। राज्य के प्रभारी बी के हरिप्रसाद से भी ज्यादा ताकतवर दिल्ली में मोतीलाल वोरा भी बैठते हैं और साथ ही दिग्विजय सिंह भी। मोतीलाल क्योंकि छत्तीसगढ़ के हैं लिहाजा यहां की राजनीति में उनका दखल जायज है लेकिन दिग्विजय सिंह के दखल को ना तो जोगी कैंप सही मानता और ना ही कांग्रेस की मजबूती देखने वाले कट्टर कांग्रेसी। इसी वजह से सब खामोश हैं। जोगी कैंप मजबूत होगा तो यकीनन फिर दिल्ली की इतनी नहीं चलेगी। इसी वजह से खुद कांग्रेसी ये मानते हैं कि राजा साहब और मोतीलाल वोरा ने मिलकर डा चरणदास महंत को छत्तीसगढ़ कांग्रेस की बागडोर दिलाने में अहम रोल अदा किया। इतना ही नहीं अब कांग्रेस के अंदरखाने से ये खबर निकलकर आ रही है कि मोतीलाल अपने बेटे को टिकट दिलाना चाहते हैं और दिग्विजय सिंह दुर्ग से लोकसभा चुनाव लडऩा।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की वापसी के लिए खुद राहुल गांधी और कांग्रेस हाईकमान भी ये नहीं चाहता कि राजा साहब वहां की राजनीति में दखल दें। सिंधिया को पूरा मौका और पूरा अधिकार वहां पार्टी की ओर से दिया गया है। सारी स्थिति को भांपकर ही खुद राजा साहब ये कह चुके हैं कि वो अब एमपी की राजनीति नहीं करेंगे पर लगे हाथ वो भी कहते आ रहे हैं कि वो फिर चुनाव लड़ सकते हैं। कारण ये भी है कि दस साल तक चुनाव लडऩे की जो कसम राजा साहब ने खाई थी उसकी अवधि भी पूरी हो चुकी है।
लिहाजा कहने को जहां से हाईकमान चाहेगा वो लड़ेंगे लेकिन चहेतों की नजर में मध्यप्रदेश की जगह छत्तीसगढ़ उनके लिए मुफीद माना जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक इसी वजह से छत्तीसगढ़ के तमाम समर्थक कांग्रेसी नेताओं ने जो रिपोर्ट राजा साहब को सौंपी उसके मुताबिक केवल दुर्ग ही ऐसी सीट है जहां जोगी कैंप सबसे कम नुकसान कर सकता है। यहां से भाजपा की सरोज पांडे सांसद हैं। हर कोई जानता है कि किस तरह पिछली बार ये सीट भाजपा ने जीती थी। इन्हीं सब तथ्यों के आधार पर दुर्ग की जंग राजा साहब लड़ेंगे ये तैयारी जोर से चल रही है।