मोहम्मद हुसैन फजीली अपने पिता के साथ( फोटो हिंदुस्तान टाइम्स)

 बेटे के इंतजार में मां लकवाग्रस्त हो चुकी हैं. वालिद दिल की बीमारी से लाचार हैं. पर उनका बेटा 12 साल की ऐसी सजा काट कर आया है जो गुनाह उसने किया ही नहीं. दिल्ली सीरियल बम विस्फोट के आरोप से बेगुनाह साबित हुए हैं मोहम्मद हुसैन फजीली ने अपनी जवानी जेल में काट दी.

मोहम्मद हुसैन फजीली अपने पिता के साथ( फोटो हिंदुस्तान टाइम्स)
मोहम्मद हुसैन फजीली अपने पिता के साथ( फोटो हिंदुस्तान टाइम्स)

यह कहानी 2005 के सरोजनीनगर बम विस्फोट से शुरू होती है जिसमें 67 लोगों की जान गयी थी. लेकिन पिछले ही हफ्ते दिल्ली की अदालत ने फजीली को बेगुनाह करार दिया है. भारत की न्यिक व्यवस्था की लाख शिकायतों के बावजूद इसने फजीली के लिए खुश होने का बड़ा अवसर प्रदान किया है. लेकिन दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने जिस तरह से फजीली को फंसाया और उनकी जिंदगी और परिवार को तबाह किया इसका हिसाब किस से मांगेंगे फजीली?

फजीली ने अपनी दर्दनाक कहानी हिंदुस्तान टाइम्स  के पत्रकार अभिषेक साहा को श्रीनगर के बचपोरा में सुनाई, जहां उनकी मां पिछले 12 वर्षों से इंतजार कर रही थीं. इस लम्बी जुदाई ने फजीली की मां को लकवाग्रस्त कर दिया है. फजीली अखबार को बताते हैं कि उनके परिवार की तबाही, उनके रोजगार, उनके बहुमूल्य 12 साल और इससे बढ़ कर आने वाले दिनों में उनके रोजगार की गारंटी कौन लेगा.

 

फजीली को, 2005 में तब पुलिस ने उठा लिया था जब वह इशा की नमाज पढ़ कर घर लौट रहे थे. फिर उसके बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया और इस तरह उन्होंने 12 साल जेल में बिता दिया. फजीली कहते हैं, ‘मैंने एक ऐसे अपराध की सजा काटी जो मैंने की ही नहीं थी’.फजीली यह भी कहते हैं कि मेरी मां का दर्द ठीक उन माओं जैसा ही है जिनके बेटे बम विस्फोट में मारे गये थे.

फजीली के इस कथन में जो दर्द छुपा है उससे उनके साथ सहानुभूति दिखा देने मात्र से समस्या का समाधान नहीं हो जाता. सवाल यह है कि विशेष शाखा ने अपनी नाकामी छिपाने के लिए एक निर्देष को सलाखों के पीछे धकेल दिया. ऐसे में ऐसे कड़े प्रावधान होने चाहिए कि अगर निर्दोष को सलाखों में रखा जाये तो पुलिस संगठनों के अफसरों को सका जिम्मेदार माना जाये और उन्हें भी सजा दी जाये. साथ ही फजीली जैसे बेगुनाह के पुनर्वास की जिम्मेदारी भी सुनिश्चित की जाये.

भारत के विभिन्न आतंकी हमलों के बाद पकड़े गये आरोपियों में ऐसे दर्जनों नाम हैं जो दस साल-12 साल जेल में गुजारने के बाद बेगुनाह साबित हो कर रिहा किये जा चुके हैं. अपनी जगह यह सवाल मौजू है कि आतंकी वारदात के मुजरिम को हर हाल में सजा हो लेकिन किसी बेगुनाह की जेल में डालने, उसकी जिंदगी बर्बाद करने और जेल में यातना देने वालों को भी गुनाहगार घोषित किया जाये.

By Editor


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