आपको इस देश के कितने घोटालों के नाम याद हैं? ‘दिल्ली सलतनत’ में इस बार देशपाल सिंह पंवार इन घोटालों से आपको रू ब रू करा रहे हैं-
एक हो तो बताएं, ना जानें कितने घोटाले
कांग्रेसी जानते हैं कि जनता जल्दी भूल जाती है। सच भी है। खतरा वहीं है जहां नाम या तो आसान हो या रकम ज्यादा हो या फिर बड़े निपट जाएं। अगर मीडिया रोज याद ना दिलाएं तो शायद जनता को याद भी ना रहे।
पर कोलगेट व रेल गेट को कैसे भूल सकता है? हर किसी से जुड़े हैं। कामनवेल्थ घोटाला,2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला, हेलीकाप्टर घोटाला, कोयला आंवटन घोटाला, परमाणु ईंधन थोरियम घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला, चावल निर्यात घोटाला, एलआईसी हाउसिंग घोटाला, सेना ट्रक खरीद घोटाला, मानव रहित विमान खरीद घोटाला, गोदावरी बेसिन तेल घोटाला, गोरश्कोव जहाज घोटाला, इंदिरा गांधी एयरपोर्ट आवास निर्माण घोटाला, मेगा पावर प्रोजेक्ट घोटाला, एयर इंडिया सिक्योरिटी सिस्टम घोटाला, आईपीओ डीमैट घोटाला, रूसी पनडुब्बी घोटाला, पंजाब सिटी सेंटर परियोजना घोटाला, ताज कारिडोर घोटाला, हसन अली कर घोटाला, सत्यम घोटाला, सेना राशन चोरी घोटाला, स्टेट बैंक आफ सौराष्ट्र घोटाला, झारखण्ड चिकित्सा उपकरण घोटाला, उड़ीसा खदान घोटाला, मधुकोड़ा खनन घोटाला, आईपीएल क्रिकेट घोटाला अर्थात घोटाला ही घोटाला। मनमोहन टीम की गलती नहीं है। दरअसल वो जानते थे कि फिर कहां मौका- लूट लो जितना लूट सको।
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एंटनी की पीड़ा से काट रहा है कीड़ा
भाट तारीफ करे तो कोई बात नहीं। पर कट्टर आलोचक कुछ बोले तो उस बात का वजन होता है। इसी तरह करप्ट नेता करप्शन के खिलाफ बोले तो क्या फायदा? हां ईमानदार ईमानदारी से कुछ कहे तो लोग मानते हैं। आज जब चारों तरफ हाथ में भ्रष्टाचार की खुजली हो रही है ऐसे में ईमानदार और खरी बोलने वाले एंटनी साहब अगर ये कहते हैं कि कांग्रेस व केंद्र की छवि खराब हुई है तो उनकी बात में दम है। एंटनी की पीड़ा को हो सकता है कि तमाम दागी कांग्रेसी बिना मतलब और बे समय की टिप्पणी घोषित कर घेरेबंदी में जुट जाएं पर तमाम धनखोर हों तो जाहिर सी बात है कि ईमानदार को पीड़ा तो होगी। अब पीड़ा होगी और कीड़ा काटेगा तो बोलना भी छोड़ दिया जाए। एंटनी साहब तो वैसे भी कम ही बोलते हैं। हर शब्द की कीमत समझते हैं। फिजूल में नेताओं की तरह आए दिन शब्दों से प्रदूषण नहीं फैलाते। पर उन्हें पीड़ा हो रही है इस बात से कि सरकार की छवि जनता में बिगड़ रही है। करप्शन के जहर से पूरा हाथ ही सड़ता नजर आ रहा है। वो ये गलत नहीं कहते कि सरकार कोशिश कर रही है। पर एंटनी साहब ये भूल गए हैं कि कोशिश के साथ-साथ कोशिश करते दिखना भी जरूरी है। बस कांग्रेस यहीं मात खा रही है। जब दिखना चाहिए तब कोई बोलता नहीं। जब नहीं दिखना चाहिए तब सारे टर्र-टर्र करते नजर आते हैं। बेसुरे राग से तो यही होगा।
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खुद करें सही-दूसरा करे तो गलत
गजब की राजनीति है। कमल वाले खुद करें तो कोई बात नहीं लेकिन यही काम अगर हाथ वालें करें तो दर्द। जहां-जहां कमल वालों की सरकार है वो तो जरा सा कुछ करते हैं तो हल्ला काट देते हैं। खजाना मीडिया पर लुटा देते हैं लेकिन घपले-घोटालों से लकवाग्रस्त हाथ वाले अगर इसका इलाज 180 करोड़ में कराना चाहते हैं तो उन्हें तकलीफ। भाई विकलांग ठीक थोड़े ही होता है। हर किसी को स्वस्थ रहने का हक है। सेहत ठीक रहेगी तभी शरीर मजबूत रहेगा और देश भी। अगर हाथ वाले आपसे ही सीखकर फीलगुड कर रहे हैं तो फिर क्यों इतना परेशान हो? हाथ वाले अगर कह रहे हैं कि वो भारत निर्माण के वास्ते प्रचार करना चाहते हैं तो 180 करोड़ में सौदा बुरा नहीं। कमल वालों की ये बात तो सही है कि बंधुआ मजदूरी पिछली सदी में ही कानूनन खत्म हो गई थी फिर इस तरह की बातें क्यों? पर कमल वाले ये कैसे भूल गए कि कागजों में तो तमाम कानून हैं पर धरातल पर स्थिति तो दूसरी है। बंधुआ मजदूर हर बंगले और खेत में आज भी मिलेंगे। उत्तर भारत के तो सारे ईंट भट्टों पर कमल वालों को थोक में बंधुआ मजदूर मिल जाएंगे। इसी कारण तो बोलचाल की भाषा में तिवारी जी ने बंधुआ मजदूरी की बात कह दी है। तो इस पर इतना हल्ला क्यों?