देश के सबसे ताकतवर नौकरशाह की नियुक्ति के मामले में पक्ष और विपक्ष के बीच जबर्दस्त टकराव हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने नृपेंद्र मिश्र को कानून में बदलाव करके अपना प्रधान सचिव नियुक्त किया था.

लेकिन विपक्ष इस नियुक्ति के खिलाफ है.
ये है मामला
केंद्र की सत्ता संभालते ही प्रधान मंत्री ने जो सबसे पहली नियुक्ति की थी, वह थी नृपेंद्र मिश्र को अपना प्रधान सचिव नियुक्त करना. नृपेंद्र की नियुक्ति में दिक्क्त यह थी कि वह बिना कानून में संशोधन किये प्रधान सचिव नहीं बनाये जा सकते थे क्योंकि वह दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण के अध्यक्ष रह चुके थे और कानून के अनुसार प्राधिकारण का अध्यक्ष देश अथ्वा राज्य के किसी भी सरकार पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता था. लेकिन इसके लिए मोदी सरकार ने एक अध्यादेश लाकर इस कानून में संशोधन कर दिया और नृपेंद्र को पीएम का प्रधान सचिव बना दिया.
इसी बारे में- बातें हैं, बातों का क्या
ध्यान देने की बात है कि पीएम का प्रधानसचिव देश का सर्वाधिक शक्तिशाली नौकरशाह माना जाता है.
कौन हैं नृपेंद्र
न गौरतलब है कि 1967 बैच के आईएएस रहे नृपेंद्र मिश्रा 2006-2009 के दौरान ट्राई के अध्यक्ष रह चुके हैं. वह कल्याण सिंह सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के सबसे चहेते आईएएस भी रह चुके हैं. लेकिन तब वह कुछ विवादों में भी घिरे जिसके बाद कल्याण सिंह ने उन्हें उनके पद से हटा दिया था. खबर तो यह भी है कि नृपेंद्र का आरएसएस से काफी करीबी रिश्ता रहा है. और पीएम का प्रधान सचिव बनाने के लिए नागपुर से विशेष दबाव था.
अब ऐसे है टकराव
विपक्षी पार्टियों का तर्क है कि आखिर क्यों सरकार नृपेंद्र के लिए इतनी मेहरबानी दिखा रही है ? वह कानून में संशोधन एक व्यक्ति विशेष के लिए क्यों करना चाहती है. चूंकि सरकार ने अध्यादेश के जारी नृपेंद्र की नियुक्ति की है इस लिए अब उस अध्यादेश को संसद से स्वीकृति दिलानी होगी. लोकसभा में तो स्थिति ठीक है लेकिन राज्य सभा में यह मामला कठिन दिख रहा है. क्योंकि कांग्रेस, लेफ्ट पार्टियां और तृणमूल इसका विरोध कर रही हैं.
राज्यसभा की कुल संख्या – 245
एडीए – 56, यूपीए – 80, गैर एनडीए-36, अन्य-73
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