केंद्र सरकार ने दोषी ठहराए गए सांसदों और विधायकों के आजीवन चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध के विरोध में उच्‍चतम न्‍यायालय में एक हलफनामा दायर किया है. सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि संसद ने सोच समझ कर ही जनप्रतिनिधित्‍व कानून में ऐसे मामले के लिए छह साल का समय तय किया है. कानून का यह प्रावधान काफी समय से लागू है और वैद्य भी है. 

नौकरशाही डेस्‍क

सरकार ने कहा कि जनप्रतिनिधित्‍व कानून 1951 में छह साल की अयोग्‍यता की अवधि तय है. इसके अलावा भी संविधान में सदस्‍यों की अयोग्‍यता के मापदंड तय हैं. इसलिए ऐसे मामले में कोर्ट द्वारा किसी तरह का दखल या पाबंदी उचित नहीं है. कोर्ट तभी दखल दे सकता है जब कानून शून्‍यता की स्थिति बने.

सरकार ने भाजपा नेता अश्‍विनी उपाध्‍याय की याचिका के जवाब में हलफनामा दायर करते हुए सांसद और विधायक के लिए न्‍यूनतम शैक्षणिक योग्‍यता और अधिकतम उम्र सीमा तय करने का भी विरोध किया है. सरकार ने कहा कि राजनीति का अपराधीकरण रोकने और चुनाव सुधार पर विधि आयोग की 244वीं सिफारिश और 255 वीं रिपोर्ट की सिफारिश को लागू करने के लिए एक टास्‍क फोर्स बनाई है.

गौरतलब है कि राजनीति में अपराधीकरण को रोकने की मांग को लेकर याचिका दायर की है, जिसके विरोध में केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर किया. बता दें कि ये मुद्दा पूर्व में एक अन्‍य मामले में पब्लिक इंटरेस्‍ट फाउंडेशन बनाम भारत सरकार केस में उच्‍च्‍तम न्‍यायालय में लंबित है.  फिलहाल दो साल या इससे अधिक सजा पाने वालों जनप्रतिनिधियों के छह साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध है. हालांकि चुनाव संबंधी सिफारिशें अभी भी सरकार के पास विचाराधीन है.

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By Editor


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