एक सिस्टम का हिस्सा बनकर तो दूसरा सिस्टम से निकल कर लड़ रहा है जंग, पर दोनों का लक्ष्य भ्रष्टाचार को मात देना है.इन दोनों योद्धाओं यानी केजरीवाल और खेमका के बारे में बता रही हैं अनिता गौतम–
नौकरशाही की बड़ी कुर्सी को तेज कर जहां अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जंग का ऐलान कर चुके हैं वहीं नौकरशाही की पेचीदगियों का हिस्सा बन कर अशोक खेमका भ्रष्ट लोगों को पानी पीने पर मजबूर कर चुके हैं.
लड़ाई एक है, निशाना भी एक है पर रास्ते अलग-अलग हैं. अरविंद ने जहां रॉबर्ट वाड्रा पर डीएलएफ से गलत तरीके से लाभ लेने के दस्तावेज पेश किये वहीं आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने इस लेन-देन की डील को रद्द करके कोहराम मचा दिया है.
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भले ही केजरीवाल-खेमका की लड़ाई के रास्ते अलग-अलग पर निशाना एक है पर इनका करियर भी काफी हद तक एक जैसा ही रहा है.
दोनों नौकरशाही के शीर्ष पदों का हिस्सा या तो हैं या रहे हैं.
अरविंद 1992 बैच के आईआरएस अधिकारी हैं तो अशोक 1991 बैच के आईएएस अधिकारी हैं. दोनों ने आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. और दोनों ने रॉर्बट वाड्रा-डीएलएफ को अपने निशाने पर लिया है. जहां अरविंद ने वाड्रा-डीएलएफ सौदे को गैरकानूनी होने का दावा किया वहीं ओशोक ने भूचकबंदी महानिदेशक की हैसियत से वाड्रा द्वारा डीएलएफ को बेची गई जमीन को गैरकानूनी बता कर इस सौदे को रद्द कर दिया है.
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इस सौदे को रद्द करने और उसकी जांच का आदेश देने के बाद खेमका को हरियाणा सरकार ने उनके पद से हटा दिया. इसस पहले खेमका अपने 20 साल के करियर में 43 बार ट्रांस्फर किये जा चुके हैं.
पर अभी तक इस बात की जानकारी नहीं है कि अरविंद और अशोक एक दूसरे के सम्पर्क में हैं या नहीं.
पर यह तय है कि आने वाले दिनों में दोनों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. क्योंकि दोनों ने अलग-अलग ही सही पर देश के सबसे शक्तिशाली कुनबे के गिरेबान पर हाथ डालने की जुर्ररत की है.
हालांकि दोनों को इस बात का बखूबी इल्म है कि दोनों क्या कर रहे हैं. पूर्व और वर्तमान दोनों नौकरशाहों को पता है कि अगर उनके दावे झूटे साबित हुए तो उनका हस्र क्या होगा. इसके बावजूद अगर दोनों ने अपने जीवन की अब तक की सबसे बड़ी चुनौती स्वीकार की है तो देश को इस बात का जरूर एहसास है कि ये दोनों केवल सुर्खियां बटोरने के लिए ऐसा नहीं कर रहे होंगे.
पर खतरा इस बात का है कि देश के सबसे शक्तिशाली परिवार से लोहा लेने वाले इन दो योद्धाओं को कहीं किसी बड़ी साजिश का शिकार न होना पड़े, क्योंकि हरियाणा, जहां इस लड़ाई का केंद्र है, वहां से लेकर दिल्ली के सिंहासन तक वाड्रा-गांधी परिवार का साम्राज्य ही कायम है.
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