पटना -सामाजिक संस्था समन्वय और देशज ने चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष के अवसर पर चम्पारण में गांधी विषय पर दो दिवसीय विमर्श के पहले दिन वक्ताओं ने गांधी के आंदोलन के विभिन्न विषयों पर अपने विचार रखे. गांधी संग्राहलय के सचिव रजी अहमद ने जहां धर्मनिरपेक्षता को गांधी दर्शन का अभिन्न अंग बताया वहीं वरिष्ठ पत्रकार मधुकर उपाध्याय व अरविंद मोहन ने कहा कि चम्पारण सत्याग्रह ने अंग्रेजों के भय से किसानों को मुक्ति दिलायी.
नौकरशाही डेस्क
रजी अहमद ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता आज खतरे में है और इसके बचाने की जिम्मेदारी अल्पसंख्यकों पर नहीं बल्कि बहुसंख्य वर्ग पर है. उन्होंने कहा कि सत्याग्रह दर असल सच बोलने की साहस का नाम है लेकिन विडम्बना यह है कि आज सच बोलने का मतलब एंटिनेशनल हो जाना है. उन्होंने कहा कि अगर माइनरिटी समाज के लोग सच कह बोलने का साहस करें तो वे देशद्रोही तक घोषित कर दिये जायेंगे. अनेक सत्रों को संबोंधित करते हुए इस अवसर अनेक वक्ताओं ने अपने विचार रखे. अरविंद मोहन ने कहा कि नील की खेती के विरुद्ध भले ही चम्पारण सत्याग्रह गांधीजी ने किया लेकिन सौ सालों के बाद भी अब देश पर खतरा है. मधुकर उपाध्याय ने कहा कि चम्पारण का सत्याग्रह 1917 में मात्र एक जिले की उपज था लेकिन आज पूरा देश चम्पारण बन गया है और हर जिले में एक गांधी की जरूत है. इस अवसर पर झारखंड के जलपुरुष कहे जाने वाले शाइमन उरावं ने कहा कि जल, जमीन और ज्ञान के लिए पूरे देश में सत्याग्रह की जरूरत है.
एक सत्र को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत ने कहा कि दो दिवसीय विमर्श के बाद एक प्रस्ताव पारित करने की जरूत है जिसे देश और राज्य की सरकार को भेजा जाये. उनकी इस बात का समर्थन करते हुए मधुकर उपाध्याय ने कहा कि 1917 में गांधी जी ने तत्कालीन वायसराय को पत्र लिखा था जिसमें उन्हें फ्रेंड कहके संबोधित किया गया था. गांधी ने जब फ्रेंड कहा था तो उनका मकसद बराबरी से था. इसी तरह मुख्यमंत्री को संबोधित पत्र में संबोधन भी मुख्यमंत्री के बजाये उन्हें फ्रेंड शब्द का इस्तमाल किया जाना चाहिए.
एक अन्य सत्र को संबोधित करते हुए पंकज ने यह सवाल करके सबको अचंभित कर दिया कि गांधी के पूरे संघर्ष में आदिवासियों के साथ उनके संबंध का कोई उल्लेख नहीं मिलता जबकि सत्याग्रह की सीख गांधी को आदिवासियों से ही मिली. उन्होंने कहा कि चम्पारण की थारू जनजाति ने अंग्रेजों की गुलामी कभी स्वीकार नहीं की बल्कि वे अंग्रेजों के लिए चुनौती बनी रही लेकिन इस का उल्लेख किसी शोधकर्ता ने कभी नहीं किया. वहीं दूसरी तरफ खुदाई खिदमतगार के फैसल खान ने कहा कि गांधी जी के धर्म का दर्शन समुदायों को आपस में प्रेम के लिए था जबकि आज धर्म को घृणा के इंस्ट्रुमेंट की तरह इस्तेमाल करके समाज को बांटा जा रहा है. फैसल ने कहा कि इस देश का बहुसंख्यक वर्ग धर्म के प्रेम के दर्शन का कायल है लेकिन आज के समय में धर्म का दुरोपयोग हो रहा है इस रोकने की जरूरत है.
इस अवसर अन्य अनेक वक्ताओं ने अपने विचार रखे. विमर्श की शुरआत में सुशील कुमार ने विभिन्न सत्रों का परिचय पेश किया. दो दिनों तक चलने वाले इस जन-विमर्श का समापन 28 मई को होगा.