आगरा में 57 मुस्लिम परिवारों के 250 लोगों के हिंदू सम्प्रदाय में वापसी का षड्यंत्रकारी गुब्बारा फूट गया है. पर इसकी तीन कंस्पिरेसी थ्यूरी कितनी घातक है आइए समझते हैं.
Irshadul Haque, Editor naukarshahi.com
कहते हैं मजहब बदलना कोई शरीर के कपड़े बदल लेने जैसा नहीं है. इसके लिए आत्मिक परिवर्तन जरूरी है. जब तक किसी के अंदर रूहानी परिवर्तन नहीं होता, वह एक मजहब को छोड़ कर दूसरे मजहब को गले लगा ही नहीं सकता. न तो आप सनातन धर्म को छोड़ कर झटके में इस्लाम कुबूल कर सकते हैं और न ही इस्लाम या ईसाइयत छोड़ कर कोई अन्य मजहब स्वीकार कर सकते हैं. मजहब की तबदीली की प्रक्रिया नितांत मंद गति की प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति में समय के बदलाव के साथ बदलाव होता है. अचानक ईमान में परिवर्तन की मिसाल बिरले ही मिलती है.
गुरबत से लाचार लोगों का मजहब परिवर्तन के उदाहरण भी हैं जहां झटके में किसी लालच के बल पर मजहब परिवर्तन करा दिया जाता है. लेकिन यह आम तौर पर कारगर नहीं होता, जैसा कि आगरा के देवी रोड इलाके में सोमवार को धर्मांतरण कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वयं संघ (आरएसएस) के धर्म जागरण समन्वय विभाग और बजरंग दल के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था. धर्मांतरण कार्यक्रम में जबरन धर्म परिवर्तन की शिकार मुनीरा ने समाचार एजेंसी आईएनएस को बताया कि बीपीएल कार्ड बनवाने और जमीन का एक-एक प्लॉट देने का लालच देकर कहा गया कि ‘चलो, सिर्फ फोटो खिंचवाना है. मुनीरा ने यह भी कहा कि जहां हमें ले जाया गया वहां हवन चल रहा था जिसे देख कर हम लोग डर गये.
इस्लाम या ईसाइयत से हिंदू मजहब में जाने के बाद सबसे अहम सवाल यह खड़ा होता है कि जातिव्यवस्था में बंटे इस मजहब में जाने के बाद मजहब बदलने वालों को किस जाति में रखा जायेगा? सैंकड़ों जातियों और अनेक वर्णों में विभाजित हिंदू समाज के अंतर्विरोध के कारण यह कैसे संभव है कि एक गरीब मुस्लिम जब हिंदू बनेगा तो उसे ब्रह्मण या क्षत्रिय घोषित कर दिया जायेगा?
भाजपा के केंद्र में सत्ता में आने के बाद इस तरह की यह पहली घटना है जहां मजहब बदलने के दूसरे ही दिन आरएसएस की साजिश का भांडा फूट गया है. लेकिन इस घटना ने कई अहम सवाल खड़ा कर दिया है.
कंस्पिरेसी थ्यूरी
एक-
इस्लाम या ईसाइयत से हिंदू मजहब में जाने के बाद सबसे अहम सवाल यह खड़ा होता है कि जातिव्यवस्था में बंटे इस मजहब में जाने के बाद मजहब बदलने वालों को किस जाति में रखा जायेगा? सैंकड़ों जातियों और अनेक वर्णों में विभाजित हिंदू समाज के अंतर्विरोध के कारण यह कैसे संभव है कि एक गरीब मुस्लिम जब हिंदू बनेगा तो उसे ब्रह्मण या क्षत्रिय घोषित कर दिया जायेगा? अगर घोषित कर भी दिया गया तो क्या एक क्षत्रिय या ब्रह्मण का परिवार अपने बच्चों की शादी उस नये हिंदू के परिवार में करेगा? एक कदम और आगे बढ़िये तो क्या वैश्य समाज के लोग ही उस नये हिंदू के घर में अपने बच्चों को ब्याहेंगे? कत्तई नहीं. ले दे कर उस नये हिंदू के लिए एक जगह बचती है और वह है अतिशूद्र की श्रेणी में या फिर आउटकास्ट या दलित या अनुसूचित जाति के श्रेणी में स्वीकार किया जाना. अब आगरा की घटना पर फिर से गौर करें. वहां जिन मुसलमानों को मजहब दबदील करा कर जिस वर्ण में जगह देने की बात आयी तो वह थी बाल्मिकी समाज यानी अनुसूचित जाति में रखना. जैसा कि आईएनएस न्यूज एजेंसी ने खबर दी उसके अनुसार खुद बजरंग दल के एक सदस्य ने कहा कि जिन लोगों ने हिंदू धर्म अपनाया है, वे सभी वाल्मीकि समाज से ताल्लुक रखते हैं. अब सवाल यह है कि कोई व्यक्ति मजहब बदल कर हिंदू बनता है तो क्या वह हिंदू मजहब के सबसे निचली श्रेणी में जाना स्वीकार करेगा? उस श्रेणी में जो हिकारत की नजरों से देखा जाता है. जो छुआछूत का शिकार होता है. जिन्हें मंदिरों में प्रवेश की बमुश्किल अनुमति होती है.
कंस्पिरेसी थ्यूरी -2
रोटी-रोजगार के लिए मजबह बदलने की बात अगर मान ली जाये तो हिंदू मजहब में एक आकर्षण जरूर है. ये है अनुसूचित जाति को मिलने वाले लाभ का. अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले लोगों को शिक्षा, नौकरी सरकारी योजनाओं , असेम्बली और लोकसभा सीटों में आरक्षण का लाभ मिलता है. यह बहुत महत्पूर्ण लाभ है. पिछले पचास साठ सालों में इस लाभ को उठा कर अनुसूचित जाति के लोगों का राजनीतिक और शैक्षिक रूप से जितना सशक्तीकरण हुआ है वह अकल्पनीय है. इसी बूते उत्तर प्रदेश में मायावती जैसी नेताओं का उदय हुआ और जिनने अगड़ी जाति से सिंहासन तक छीन लिया. यह थ्यूरी इतनी प्रभावशाली है कि इस लालच में मुसलमानों के एक वर्ग को प्रभावित किया जा सकता है. लेकिन मजहब एक ऐसी आस्था का नाम है जिसके आगे लोग अपना सब कुछ कुर्बान कर दें लेकिन मजहब न बदलें.
भारतीय संविदान के अनुच्छेद 341 ने सिर्फ हिंदू, बौध और सिखों को यह हक दिया है कि वे अनुसूचित जाति को मिलने वाले आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं. ये लाभ मुस्लिमों और ईसाइयों को नहीं मिलता. यानी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारा संविधान यहां भेदभाव करता हुआ पाया जाता है. क्योंकि एक हिंदू धोबी, हिंदू बाल्मिकी तो आरक्षण का लाभ ले सकता है लेकिन मुस्लिम धोबी या मुस्लिम मेहतर यह लाभ नहीं ले सकता.
कंस्पिरेसी थ्यूरी-3
आरएसएस का यह कदम जो उसने आगरा में उठाया, उसका मकसद यह है कि उत्तर प्रदेश में मजहबी उन्माद फैलाया जाये. हिंदुओं और मुस्लमानों के बीच ऐसी गहरी रेखा खीची जाये कि समाज राजनीतिक रूप से दो भागों में बंटे और इसका लाभ उत्तर प्रदेश में होने वाले असेम्बली चुनावों में उठाया जा सके. आरएसएस को पता है कि अगर ये मुसलमान हिंदू बन जाते हैं तो यह मैसेज जायेगा कि मुसलमानों में हिंदू मजहब के प्रति आकर्षण है. उसे यह भी पता है कि मजहब परिवर्तन का यह डरामा विफल भी हो जाये, जैसा कि आगरा में विफल हो गया तो भी उसको इसका राजनीतिक लाभ लेने में मदद मिलेगी. इस विफलता के बाद आरएसएस हिंदुओं में यह मैसेज देगा कि अहिंदुओं को हिंदू बनाने का प्रयास चलना चाहिए. इससे कुछ उन्मादी हिंदुओं को बल मिलेगा.
सच्चाई तो यह है कि जबरन मजहब परिवर्तन कराना देश के कानून के हिसाब से जुर्म है और ऐसी करतूत करने वालों के खिलाफ कार्रवाई किया जाना चाहिए. खुद कई ऐसी घटनायें हैं जिसमें खुद आरएसएस ने मांग की है कि जबरन मजहब परिवर्तन करने वालों को सजा दी जाये.
अब, जबकि आरएसएस की यह करतूत उजागर हो गयी है और आगरा के गरीब मुसलमानों ने मीडिया को बता दिया है कि उनका जबरन मजहब बदलवाया गया, ऐसे में यह देखना बाकी है कि यह जुर्म जिन्होंने किया है उनके संग कानून कैसा रवैया अपनाता है.
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