वही नंदन नीलेकणि जो इंफोसिस के जन्मदाताओं में से हैं. कई रूप हैं इनके बिजनेस पुरोधा, आईटी एक्सपर्ट, सोशल इंट्रप्रेन्योर, आधार कार्ड के जनक और अब राजनीति!
अनिता गौतम
एक गर्म दोपहरी में जब नीलेकणि मनमोहन सिंह से मिलने पहुंचे तो उनके दिमाग में युनिक आडेंटिटी कार्ड और कैश ट्रांस्फर जैसी सामाजिक योजनाओं की रूप रेखा हिलोरें मार रही थीं. साउथ ब्लाक ने उनसे पूछा कि इसके राजनीतिक निहतार्थ क्या होंगे. नीलेकणि ने समझाया. हाकिमों को योजना पसंद आयी और नतीजा यह हुआ कि संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होते हुए नीलेकणि कैबिनेट रैंक का पद पा गये.
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कांग्रेस, नीलेकणि के कैश ट्रांस्फर और आधार कार्ड की इतनी दीवानी हुई कि उसने उनमें एक बड़े चेंजमेकर का चेहरा नजर आया. अब नीलेकणि और सशक्त भूमिका के लिए तैयार हो रहे हैं. खुद राहुल गांधी उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने की दावत दे चुके हैं.
नीलेकणि का जीवन भी जबर्दस्त विविधताओं भरा रहा है. उन्होंने एक इमप्लाई से इंट्रप्रेन्योर तक का सफर तय तो किया ही है. आईटी उद्योग के पुरोधा भी और सरकार की योजनाओं के क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले वाहक भी बने.
राजनीति का रुख
और अब एक और बड़ी जिम्मेदारी की तरफ बढ़ रहे हैं. यह है राजीति.
स्पष्ट रूप से 58 वर्षी नीलेकणि बड़ी भूमिका की तरफ बढ़ रहे हैं. वह इकोनॉमिक टाइम्स को बताते हैं“मुख्यधारा से जुड़ कर आम लोगों के लिए एक बड़े बदलाव के वाहक के रूप में करना, बस यही चाहता हूं”.
वह कहते हैं ऐसे बड़े बदलाव पर काम करने के लिए आपको बड़े पैमाने पर बड़े राजनीतिक सहयोग की जरूरत होती है.
पर इन बदलावों को आगे बढ़ाने के लिए वह खुद मनमोहन सिंह और जय राम रमेश की तरह राज्य सभा में जा सकते थे पर वह ऐसा नहीं करना चाहते. वह चाहते हैं कि लोकसभा में जाना ही बेहतर होगा ताकि दुनिया देखे कि वह वास्तविक जनप्रतिनिधि है न कि पिछले दरवाजे से सदन में पहुंचे नेता.
एक बड़े उद्योगपति दीपक पारेख कहते हैं- यह एक बहुत बड़ी बात है कि नीलेकणि चुनाव लड़ना चाहते हैं जबकि राज्यसभा में वह जब चाहें जा सकते हैं. यह सचमुच बड़ी बात है.
ऐसे में माना जा रहा है कि नीलकणि बंगलोर से चुनाव लड़ सकते हैं.
1.3 अरब डॉलर की परिसम्पत्तियों के मालिक नीलेकणि किसी एक स्थान पर ठहरे हुए पनी की तरह होना पसंद नहीं करते. निजी और पब्लिक जीवन में बदलाव ही उनका मूलमंत्र रहा है. टाइम पत्रिका ने उन्हें दुनिया के 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में भी जगह दी है. अमेरिका के याले विश्वविद्यालय ने उन्हें 2009 में लिजेंड इन लीडरशिप अवार्ड भी दिया है. भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण भी दे रखा है.