छत्तीसगढ़ नक्सली हमले में अब साजिश की बात सामने आ रही है. कहा जा रहा है कि ऐन वक्त पर कांग्रेस नेताओं के काफिले का रूट बदला गया. पर इस बात पर चर्चा गौण है कि हमले में इंटेलिजेंस ने कहां चूक की.
जिस सुकमा इलाके में नक्सली हमला हुआ वहां पहले लैंडमाइन ब्लास्ट किया गया. रास्ते में बारूदी सुरंग बिछा कर हमला करने की तरकीब नक्सलियों की पुरानी और स्टीक तरकीब रही है. इसे प्रशासन भी बखूबी जानता है और इंटेलिजेंस के अफसरान भी इससे वाकिफ हैं. इसके बावजूद इंटेलिजेंस ने कोई इनपुट क्यों नहीं दी.
ध्यान देने की बात है कि इंटेलिजेंस खुद को नक्सलियों की गतिविधियों पर पैनी निगाह रखने का दावा करती है.
छत्तीसगढ़ आईबी के डीडी कुंदन कृष्णन
इसका जवाब छत्तीसगढ़ के इंटेलिजेंस ब्यूरो के डेपुटी डायरेक्टर कुंदन कृष्णन को देना होगा. ध्यान रहे कि ये वही कुंदन कृष्णन हैं जो बिहार के कई जिलों के एसपी, पटना के एससपी और डीआईजी रह चुके हैं.
बिहार कैडर के 1994 बैच के कुंदन बिहार में अपने कार्यकाल में काफी विवादों में रहे हैं. 2005 में गौरव नामक स्कूली छात्र के अपहरण के मामले में तो पटना हाईकोर्ट ने उन्हें काफी खरी खोटी सुनायी थी और कोर्ट ने पुलिस निष्क्रियता से आजिज आकर कुंदन को अदालत में हाजिर करके फटकार लगाते हुए उन्हें कार्रवाई करने का अल्टीमेटम तक दिया था. कुंदन तब पटना के पुलिस कप्तान थे.
कुंदन हिरासत में लिये जाने वाले मुल्जिमों पर बेरहम बरताव करने के लिए भी जाने जाते रहे हैं. छोटे अपराधियों की तो बात ही छोड़िए पूर्व सांसद आनंद मोहन के साथ हाथापाई करने का मामला उनसे जुड़ा है. एक तरफ कुंदन अपराधियों में खौफ और दहशत फैलाने के लिए चर्चा में बने रहे वहीं दूसरी तरफ उन्होंने किसी भी दौर में प्रतिभावान आईपीएस अधिकारी होने का कोई सबूत नहीं दिया.
ताजा मामला छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले का है जहां प्रशासनिक तंत्र, सुरक्षा बल, राजनीतिक नेतृत्व की विफलता और सबसे ज्यादा इंटेलिजेंस की आधी अधूरी इनपुट के कारण इतना बड़ा हादसा हो गया. जिसमें कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, महेंद्र कर्मा समेत 30 कांग्रेसी नेता मारे गये. पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल मौत से जूझ रहे हैं.
अब केंद्र सरकार कह रही कै कि इस मामले में जिससे भी चूक हुई है उसकी जिम्मेदारी तय की जायेगी. लेकिन केंद्र सरकार ने इंटेलिजेंस ब्यूरो की असफलता पर अभी तक कुछ भी नहीं कहा है. ऐसी स्थिति में जो कमेटी अधिकारियों की नाकामी की जांच करेगी उसी इंटेलिजेंस ब्यूरो की असफलता पर ध्यान देना चाहिए.
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