नयी विज्ञापन नीति को लेकर पिछले दिनों मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की । इस दौरान उन्‍होंने नयी विज्ञापन नीति के नये प्रावधानों के संबंध में विस्‍तृत रूप से जानकारी हासिल की। सीएम ने इस बात पर फोकस किया कि 2016 और 2009 की विज्ञापन नीति में क्‍या खास अंतर है।prd

वीरेंद्र यादव

 

प्राप्‍त जानकारी के अनुसार, नयी विज्ञापन नीति में सोशल मीडिया को लेकर खास फोकस किया गया है। नीतियों के निर्धारण में सोशल मीडिया का बढ़ता हस्‍तक्षेप और प्रचार माध्‍यमों में आ रहे तकनीकी बदलाव का असर भी नयी विज्ञापन नीति में दिखेगा। इलेक्‍ट्रानिक मीडिया और सोशल मीडिया की तकनीकी बदलने के कारण विज्ञापन की भाषा, संरचना, भाव-भंगिमा के साथ आवाज के स्‍तर पर भी फोकस किया जा रहा है। विज्ञापन तैयार करने की तकनीकी और कंपनी को लेकर भी बैठक में मुख्‍यमंत्री ने चर्चा की।

 

आधिकारिक सूत्रों की मानें तो नयी विज्ञापन नीति में छोटे व मझौले पत्र-पत्रिकाओं के लिए पहल की जा सकती है। इसका मकसद बड़े अखबारों के एकाधिकार के कारण सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को मिल रही चुनौती का सामना करना भी है। कम प्रसार संख्‍या वाले पत्र-पत्रिकाओं का असर भी सीमित क्षेत्रों में होता है, लेकिन उस असर को भी एकदम नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। नयी विज्ञापन नीति को पहले की तुलना में ज्‍यादा लचीला बनाया जा रहा है ताकि विज्ञापन जारी करने में होने वाली परेशानियों को कम किया जा सके। इसके साथ सोशल मीडिया खासकर न्‍यूज पोर्टलों को विज्ञापन देने की प्रक्रिया को भी आसान बनाया जाएगा।

By Editor


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