निर्भया बलात्कार कांड के नाबालिग दोषी की रिहाई पर रोक की अंतिम कवायद आज उस वक्त असफल रही, जब उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) की याचिका आज खारिज कर दी। न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की अवकाशकालीन खंडपीठ ने डीसीडब्ल्यू की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) यह कहते हुए खारिज कर दी कि नाबालिग दोषी की रिहाई नहीं रोकी जा सकती क्योंकि सजा पूरी करने के बाद रिहाई उसका अधिकार है।
डीसीडब्ल्यू की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गुरु कृष्णकुमार एवं अधिवक्ता देवदत्त कामत ने खंडपीठ के समक्ष दलील दी कि नाबालिग दोषी को दो वर्ष के लिए सुधार कार्यक्रम के तहत भेजा जाना अनिवार्य है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ है। उनका कहना था कि खुफिया ब्यूरो की यह भी रिपोर्ट है कि नाबालिग अपराधी कट्टर बन चुका है और उसके बार-बार ऐसे अपराधों को अंजाम देने की आशंका प्रबल नजर आती है। हालांकि न्यायालय ने कहा कि वह कानून के मुताबिक ही कोई फैसला दे सकता है, न कि कानून के विरुद्ध जाकर। न्यायमूर्ति गोयल ने कहा, ‘‘आम आदमी की चिंताओं के प्रति हम भी अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हैं, लेकिन मौजूदा कानून के तहत हमारे हाथ बंधे हैं। मौजूदा कानून के तहत हम तीन वर्ष से अधिक के लिए उसे सुधार गृह में नहीं रख सकते हैं।”
शीर्ष अदालत ने करीब आधे घंटे तक चली सुनवाई के बाद नाबालिग दोषी की रिहाई पर रोक लगाने में असमर्थता जताते हुए कहा कि बगैर कानूनी प्रावधानों के वह संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त किसी व्यक्ति के अधिकारों को नहीं छीन सकती। गौरतलब है कि डीसीडब्ल्यू की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने 19 और 20 दिसंबर की मध्यरात्रि में उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसके बाद न्यायमूर्ति गोयल ने मामले की सुनवाई के लिए आज की तारीख मुकर्रर की थी।