बिहार में शराबबंदी के साकारात्मक परिणाम के चर्चों के बीच कई नाकारात्म परिणा भी दिखने लगे हैं. खबर है कि शराब के आदी दो शख्स की मौत इसलिए हो गयी कि उन्हें शराब न मिली.
एडोटोरियल कमेंट, इर्शादुल हक
हिंदुस्तान की खबर के मुताबिक रोहतास और कैमूर में शराब के लत के शिकार दो लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है. शराब के आदी इन दोनों लोगों को अस्पताल ले जाया गया था. पर डाक्टर उन्हें बचा न सके. सासाराम की महिला राजो ने अखबार को बताया कि उनके पति प्रकाश शराब के आदी थे. उन्होंने बताया कि शराब न मिलने के कारण प्रकाश को रात-रात भार नींद नहीं आ रही थी. आखिरकार प्रकाश को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा. दूसरी घटना कैमूर की है. सदर अस्पतल में इलाज के दौरान इस मरीज की भी जान चली गयी.
शराब पर पाबंदी की तारीफ में भले ही लाखों लोग हैं पर शराब न पीने के नाकारात्मक परिणाम पर सोचना भी समाज और सरकार का काम है. शराब की लत लग चुके लोगों के लिए क्या किया जा सकता है इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है. केवल शराब न पीने से होने वाली मौत पर सरकार अगर मुआवजा दे दे तो यह काफी नहीं है. सरकार को कुछ ऐसी व्यस्था करनी होगी जिससे ऐसे एडिक्टेड शराबियों की जान बचायी जा सके.
शराबबंदी लागू हुए अभी दस दिन हुए हैं. इन दस दिनों में शराब एडिक्टेड लोगों की मौत की खबरें तो आ ही रही हैं साथ ही कुछ लोगों के बारे में खबर है कि शराब न मिलने से वे लोग साबुन खा रहे हैं. कुछ लोग बेहोश हो के गिर रहे हैं. एक पुलिस अधिकारी की तो वर्दी में ही बेहोश होती तस्वीर अखबारों में छप चुकी है. कुछ लोग शराब के वैकल्पिक रास्तों की तलाश करने पर मजबूर हैं. कुछ लोग सुलेशन सूंघ रहे हैं.
ऐसे हालात चिंताजनक है. शराब पर पाबांदी से समाज पर होने वाले साकारात्मक परिणाम के लिए कोशिश करना अगर समाज और सरकार अपनी जिम्मेदारी समझते हैं तो शराब एडिक्टेड लोगों की जान की सलामती की जिम्मेदारी भी हमारे समाज और हमारी सरकार की है. जो रा सोचिए.
हम अच्छे फैसले के नाम पर क्रूर नहीं बन सकते. सरकार और समाज के लिए मानवाधिकार की बुनियाी शर्तें भी हैं. हमारे ऐसे फैसले से जो लाख सही हो और उससे किसी की जान जाने लगे तो हम खुद को सही कहने का साहस नहीं कर सकते. हमें संवेदनशील होना होगा. इन बातों को समाज के बौद्धिक वर्ग के साथ साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी सोचना ही होगा.