नीतीश एक हाथ में धर्मनिरपेक्षता और दूसरे में विशेष राज्य दर्जे का सौदा लिये राजनीति के बाजार में खड़े हैं, इस सौदे की एक्सपायरी डेट 2014 है.

साभार इंडिया टुडे
साभार इंडिया टुडे

इर्शादुल हक,सम्पादक नौकरशाही डॉट इन

राजनीति सह-मात का खेल है, सौदेबाजी है. अगर आप मोलभाव करने की स्थिति में हैं तो आप अच्छा सौदा कर सकते हैं.

नीतीश यही कर रहे हैं और करते रहे हैं. इसलिए कि वह मोल भाव करने की पोजिशन में हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने मोलभाव करने का खुला ऐलान कर दिया था. हालांकि समय उनके अनुकूल नहीं हो पाया था.याद कीजिए जब 2009 में लोकसभा चुनाव हो गये थे और परिणाम का इंतजार किया जा रहा था. नीतीश, एनडीए में रहते हुए मोलभाव का एक सौदा राजनीति के बाजार में लेकर खड़े हो गये थे.उन्होंने पटना के होटल मौर्य में एक कार्यक्रम में कहा- हमारी पार्टी उसी का समर्थन करेगी जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा करे. चाहे वह बीजेपी हो या कांग्रेस. वह एनडीए में रहते हुए यह कह रहे थे. पर शाम होते-होते स्थितियां बदल गयीं. चुनाव परिणाम आये और कांग्रेस को जद यू की हिमायत की जरूरत ही न पड़ी. नीतीश के सौदे का मोल उस समय नहीं मिल पाया.फर्ज कीजिए कांग्रेस को 2009 में जद यू के समर्थन की जरूरत पड़ती तो क्या नीतीश एनडीए से गठबंधन धर्म की तिलांजलि उसी वक्त नहीं दे देते?

नीतीश अपने दोनों हाथों में मोलभाव करने के दो सौदे ले कर राजनीति के बाजार में खड़े हैं. एक हाथ में ‘धर्मनिरपेक्षता’ का सौदा है तो दूसरे हाथ में ‘विशेष राज्य’ के दर्जे का सौदा. और इस सौदे की मियाद 2014 तक है. यानी 2014 तक इसकी एक्सपायरी डेट है. 2009 से वह बाजार में खड़ें हैं. अभी तक यह सौदा पूरा नहीं हुआ है. नीतीश की पूरी राजनीति इन्हीं दोनों मुद्दों के इर्द गिर्द घूम रही है.

नरेंद्र मोदी-आडवाणी प्रकरण के बाद नतीश अपने इन दोनों सौदों को लेकर फिर राजनीति के बाजार में हैं. मोदी की कीमत पर वह ‘धर्मनिरपेक्षता’ का सौदा बीजेपी से करने में जुटे हैं. पर साथ ही वह अपने दूत केसी त्यागी को ममता बनर्जी की चौखट पर भेज कर विशेष राज्य के दर्जे की राजनीति की संभावना भी बनाये रखना चाहते हैं. वह खुद कहते हैं बिहार, पश्चिम बंगाल और उड़िसी की एक समस्या है इसलिए एकजुट होने की जरूरत है.

गोया कि धर्मनिरपेक्षता और विशेष राज्य के दर्जे के सौदे से वह भाजपा और कांग्रेस दोनों से मोलभाव कर लेने के विकल्प पर आमादा हैं.चाहे सौदा जिससे तय हो जाये. क्योंकि उन्हें बखूबी मालूम है कि 2014 में केंद्र में या तो भाजपा सरकार बनायेगी या कांग्रेस.और अगर ये दोनों सरकार बनाने की पोजिशन में न हों तो जो तीसरा विक्लप होगा उसमें इनकी भूमिका तो महत्वपूर्ण होगी ही.

संभावना

आडवाणी, नरेंद्र मोदी प्रकरण के बाद मान चुके हैं या मनाये जा चुके हैं. अब नीतीश की बारी है. उन्हें भाजपा अध्यक्ष राजन नाथ सिंह, मुरली मनोहर जोशी और खुद लालकृष्ण आडवाणी को फोन आ चुका है. अभी तक नीतीश ने उन नेताओं को न हां बोला है और न ना. ममता और नवीन पटनायक के साथ फेड्रल फ्रंट बनाने पर भी अभी वह खामोश हैं. कांग्रेस इस पूरे मामले में चुप है. यह नीतीश के लिए अप्रत्याशित है. इधर भाजपा जद यू जैसे सहयोगी को खो देने रिस्क नहीं लेना चाहेगी. यह नतीश और शरद यादव को भी पता है.तब संभव है की भाजपा जद यू से मेल मिलाप की बात इस तरह से तय हो कि भाजपा यह घोषणा करे कि मोदी चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष बनाये गये हैं, न कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार. तब भाजपा यह भी कह सकती है कि प्रधानमंत्री का उम्मीदवार चुनने का काम 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद संसदीय दल की बैठक में किया जायेगा. तब नीतीश की दूसरी शर्त यह हो सकती है कि वह भाजपा से यह वादा करा लें कि चुनाव प्रचार में मोदी बिहार नहीं आयेंगे.
और फिर तब जद यू और भाजपा संयुक्त रूप से घोषणा कर सकते हैं कि उनका गठबंधन बरकरार है.

अगर कांग्रेस बदस्तूर खामोश रहती है, जैसा कि वह पिछले तीन-चार दिनों से है. और भाजपा से नीतीश की बात नहीं बनती है तो मजबूरन नीतीश को ममता,नवीन पटनायक के साथ फेड्रल फ्रंट पर विचार करना होगा. तब राजनीति के बाजार में ये तीनों मिलकर विशेष राज्य के दर्जे सरीखे सौदे को लेकर एक साथ खड़े होंगे और चुनाव होने तक इंतजार करेंगे. तब नीतीश अपने दूसरे सौदे यानी विशेष राज्य के सौदे को लेकर मोलभाव की रजनीति करेंगे.

अब देखना है कि 2009 से राजनीति के बाजार में खड़े नीतीश का कौन सा सौदा उन्हें 2014 तक अच्छा दाम दे पाता है. क्योंकि इन्हीं सौदे के मोल पर उन्हें 2015 के बिहार विधानसभा के चुनाव की नैया भी पार लगानी है.


The Advertising Network

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427