करीब 17 दिनों के संपर्क यात्रा में पूर्व सीएम नीतीश कुमार का आत्मज्ञान हुआ कि उनके अपनों ने उन्हें नहीं बताया कि आपके पैर तले जमीन खिसक गयी है। अपनों ने यह भी नहीं बताया कि उनके ‘अपने’ कौन हैं। सपंर्क यात्रा के दौरान उनके कार्यकर्ताओं ने बताया कि आपकी जड़ में घुन लग रहा था और सत्ता के मद में अपने-परायों के भेद को भूल गये थे। सत्ता की मलाई सत्ता के दलाल हड़प गये। जब सत्ता उनके साथ जाने लगी तो ऐसे ‘भकुआ’ गए कि जिनके खिलाफ सत्ता का साम्राज्य खड़ा किया था, उन्हें ही ‘सत्ता की चाबी’ थमा दी।
वीरेंद्र यादव
लेकिन नीतीश कुमार का यह ‘आत्मज्ञान’ ठीक वैसे ही निराधार है, जैसी वेदना अब प्रदर्शित कर रहे हैं। जदयू में ललन सिंह की बढ़ती तानाशाही के खिलाफ उपेंद्र कुशवाहा ने चेताया था। राजगृह के सम्मेलन में आवाज उठायी थी और परिणाम हुआ कि उपेंद्र कुशवाहा को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। शिवानंद तिवारी ने आरसीपी सिंह के सत्ता व संगठन में बढ़ते दबदबे के खिलाफ चेताया था। उन्होंने नरेंद्र मोदी के अतिपिछड़ों में बढ़ते आधार को लेकर भी आगाह किया था। शिवानंद तिवारी को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया। राज्यसभा का दरवाजा भी उनके लिए बंद कर दिया गया।
ललन सिंह कई वर्षों तक नीतीश सरकार को उखाड़ने का संकल्प दुहराते रहे, जबकि अंतिम समय में पार्टी ने उन्हें मुंगेर से टिकट थमा दिया। इतना ही नहीं, चुनाव हारने के बाद उन्हें एमएलसी बनाकर मंत्री भी बनवा दिया। सत्ता और संगठन में आज भी आरसीपी का दखल बरकरार है। यह सर्वविदित है कि सरकार के सीएम भले जीतनराम मांझी हों, लेकिन सत्ता का असली केंद्र नीतीश कुमार के सरकारी आवास 7 सर्कुलर रोड बना हुआ है और आज भी वहां के मुखिया आरसीपी सिंह ही हैं।
नीतीश कुमार के पास अब सत्ता की मलाई बांटने के लिए कुछ नहीं बची तो कार्यकर्ताओं को मलाई का सपना दिखा रहे हैं और इस सपने के सहारे आगामी चुनाव के बाद अपनी कुर्सी की किल-कांटी दुरुस्त करना चाहते हैं। अब सवाल है कि क्या सत्ता मुक्त होने के बाद नीतीश कुमार को अपनों की पहचान हो गयी है। यह तो अब आगामी चुनाव ही तय करेगा।
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