मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बंगले के शौकीन हैं। अभी आधिकारिक रूप से उनके नाम तीन बंगले आवंटित हैं। पटना में एक अण्णे मार्ग और सात सर्कुलर रोड। एक मुख्यमंत्री के रूप में, दूसरा पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में। तीसरा बंगला केंद्र सरकार ने दिल्ली में नीतीश कुमार को भेंट किया है। यह ‘उपहार’ बिहार की सत्ता में भाजपा को हिस्सेदार बनाने के लिए दिया गया है। लेकिन नीतीश कुमार बंगले पर राजनीति भी खूब करते हैं।

वीरेंद्र यादव 


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बंगले के शौकीन हैं। अभी आधिकारिक रूप से उनके नाम तीन बंगले आवंटित हैं। पटना में एक अण्णे मार्ग और सात सर्कुलर रोड। एक मुख्यमंत्री के रूप में, दूसरा पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में। तीसरा बंगला केंद्र सरकार ने दिल्ली में नीतीश कुमार को भेंट किया है

2013 में नीतीश कुमार ने भाजपा को ‘धकिया’ कर सरकार से बाहर का कर दिया था। उस समय भी भवन निर्माण विभाग ने भाजपा के भूतपूर्व हुए मंत्रियों को बंगला खाली करने का नोटिस थमा दिया था। इस नोटिस के खिलाफ कई ‘आवासधारी’ हाईकोर्ट चले गये थे। हाईकोर्ट इस पर कोई फैसला सुनाता, उससे पहले मुख्यमंत्री ने आवास में रहने की अनुमति ‘अनुकंपा’ के आधार पर दे दी थी। संभवत: बाद में कोर्ट ने भी सरकार के नोटिस पर स्टे लगा दिया था।


अब नया विवाद खड़ा हो गया है नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के 5 सकुर्लर रोड मकान को लेकर। बुधवार को भवन निर्माण विभाग के आदेश के आलोक में पटना का जिला प्रशासन मकान खाली करवाने पहुंच गया है। राजद नेताओं के विरोध और हाईकोर्ट में सुनवाई की तिथि तय होने की सूचना के बाद प्रशासन लौट गया। लेकिन सवाल यही है कि 5 सर्कुलर रोड को लेकर सरकार इतना बेचैन क्यों हैं। सुशील मोदी 2013 में उपमुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उसी मकान में रह रहे थे। नंद किशोर यादव भी मंत्री पद से हटाये जाने के बाद पहले वाले मकान में रहे थे। प्रेम कुमार ने भी अपना मकान नहीं छोड़ा था।


संसदीय प्रोटोकॉल के हिसाब से मुख्यमंत्री के बाद विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष ही सबसे बड़ा पद है। उपमुख्यमंत्री की हैसियत से कोई भी व्यक्ति आधिकारिक दस्तावेजों में हस्ताक्षर नहीं करता है। सरकारी दस्तावेजों में उपमुख्यमंत्री को भी संबंधित विभाग के मंत्री के रूप में हस्ताक्षर करना पड़ता है। उपमुख्य\मंत्री के रूप में सरकारी संसाधनों के व्यापक ‘दोहन’ का अधिकार भले मिल जाता हो, विभागीय कार्यों के निष्पादन में कोई विशेषाधिकार नहीं है।


दरअसल मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव ही भवन निर्माण विभाग के प्रधान सचिव हैं। इसलिए यह भी माना जा सकता है कि नेता प्रतिपक्ष के आवास पर प्रशासनिक कार्रवाई कम और राजनीतिक कार्रवाई ज्यादा हो रही है। वजह चाहे जो भी हो, इतना तय है कि ‘आवास पर अराजकता’ अभी थमने वाली नहीं है।

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427