सोनिया गांधी के भोज में महागठबंधन के नेताओं की बैठक के बजाय मीडिया ने नीतीश कुमार की पीएम मोदी से मुलाकात को तवज्जो दी जबकि सच्चाई यह है कि महागठबंधन की बैठक में कुछ ऐसी नजीरें पेश हुई जिसकी उम्मीद कम लोगों को थी.यही बात एनडीए की नींद हराम होने के लिए काफी है.

इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाही डॉट कॉम

आम तौर पर अभी तक महा गठबंधन बनाने की कोशिशों में कम से कम दो दो दलों की अनुपस्थिति सबको खटकती थी. पहला ऐसे किसी भी मंच पर बसपा प्रमुख मायावती नदारद रहती थीं और दूसरा ममता बनर्जी को वामपंथियों से ऐतराज होता था. या यूं कहें कि वामपंथी  पार्टियां ऐसी बैठकों से असहज महसूस करती थीं जिनमें ममता बनर्जी की उपस्थिति हो. लेकिन सोनिया के बुलाये भोज में ये दोनों बाधायें दूर हुईं.

ममता-माया फैक्टर

 

इतना ही नहीं दशकों से समाजवादी पार्टी से परहेज करने वाली मायावती इस बात के लिए राजी हो चुकी हैं कि वह उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के साथ सभा करेंगी. अखिलेश भी इसके लिये सहमत हैं. वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और वामपंथियों के बीच की आपसी रंजिश भी अब खत्म होती दिख रही है. इस प्रकार इस बात के प्रबल आसार बनते चले जा रहे हैं कि भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ देश भर में एक ऐसा महागठबंधन आकार लेता जा रहा है जिस में फिलवक्त देश के 17 दल शामिल हैं. इन दलों में अगर कश्मीर से फारूक अब्दुल्ला की पार्टी है तो  तमिलनाडु में करुणा निधि की बेटी कनी मोई भी इस महागठबंधन का हिस्सा होंगी.

इन तमाम सतरह दलों की आकार लेती एकता से एनडीए में स्वाभाविक तौर पर घराहट होगी. हिंदी भाषी क्षेत्र यूपी और बिहार में अगर महागठबंधन आकार लेता है तो इन दो प्रदेशों की 121 सीटों पर भाजपा गठबंधन की सांसे अटक सकती हैं. उधर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और वामपंथी पार्टियों में एकता हो गयी तो संभव है कि वहां 2019 के लोक सभा चुनाव में भाजपा गठबंधन का खाता भी न खुल सके और इस प्रकार बंगाल, बिहार और यूपी में 160–165 सीटे भाजपा के लिए खतरे की घंटी हो सकती हैं.

इसी तरह पंजाब, हियाणा, हिमाचल में भी अगर महागठबंधन की एकता बनती चली गयी तो पूर्वी और उत्तरी भारत में भाजपा का सफाया हो सकता है. इसके लिए महागठबंधन को अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का समर्थन मिल जाये तो भाजपा के लिए हालात और भी चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं.

उधर भाजपा का गढ़ रहे गुजरात के हालात तो पहले से ही उसके खिलाफ हैं. वहां पटेलों के आंदोलन ने पहले भीजपा को परेशान कर रखा है. पश्चिम भारत में गुजरात और पूर्वी व उत्तरी भारत में बिहार, यूपी पंजाब जैसे प्रदेश से अगर गठबंधन भाजपा का सफाया करने में सफल रहा तो उसकी सारी चुनौतियां खत्म हो जायेंगी.

जिस प्रकार से महागठबंधन के प्रति लालू प्रसाद उत्साहित दिख रहे हैं , उससे लगता है कि उनकी मेहनत जरूर रंग लायेगी. महागठबंधन की अगली बैठक जल्द ही करुणा निधि के जन्मदिवस पर आयोजित होने वाले समारोह के रूप में होगी. चेन्नई में यह कार्यक्रम आयोजित है. उम्मीद है कि सोनिया के भोज में शामिल न हो सके नीतीश कुमार चेन्नई में जरूर मौजूद रहेंगे.

मीडिया के बड़े हिस्से, खास कर भाजपा समर्थित मीडिया इस सच्चाई का सामना करने से बच रहा है कि महागठबंधन एक बड़े विकल्प के रूप में आकार ले रहा है. हालांकि ऐसा नहीं है कि मीडिया द्वारा इस खबर को इग्नोर करने से भाजपा के रणनीतिकारों को इसका एहसास नहीं है. भाजपा के रणनीतिकारों के लिए महागठबंधन एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रहा है.

By Editor


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