बिहार भाजपा का ‘नीतीश विरह’ समय-समय पर फूटता रहा है। करीब चार साल पहले नीतीश कुमार द्वारा कुर्सी से बेदखल की गयी भाजपा का घाव अभी तक भरा नहीं है। घाव भी इतना गहरा था कि समय-समय पर टीस मारता रहता है। टीस कभी-कभी मुंह पर भी आ जाती है।
वीरेंद्र यादव, ब्यूरो प्रमुख, नौकरशाहीडॉटकॉम
सत्ता से बेदखल होने के बाद पिछले विधान सभा चुनाव तक भाजपा आक्रमण की मुद्रा में थी। नीतीश को लेकर हमलावर रही थी। लालू यादव को हाशिए पर रखने का प्रयास भी भाजपा करती रही थी। लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद पार्टी विधान सभा चुनाव की फतह की मुद्रा में आ गयी थी। स्वाभाविक भी था। लेकिन विधानसभा चुनाव के पूर्व राजद, कांग्रेस और जदयू के बने महागठबंधन के सामने भाजपा टीक नहीं सकी और भाजपा का पूरा कुनबा यानी एनडीए 58 सीटों पर सीमट गया।
नीतीश के ‘रामराज्य’ में आसन जुगाड़ रही भाजपा
इस हार का सदमा भाजपा आज नहीं भूल पायी है। उसे लगने लगा कि महागठबंधन लोकसभा चुनाव में कायम रहा तो 2019 बिहार में भाजपा को मुश्किल हो सकती है। विधानसभा की दुर्गति लोकसभा में भी हो सकती है। यही कारण है कि बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद भाजपा का ‘नीतीश प्रेम’ जागा और लालू वेदना ‘डाह’ देनी लगी। बिहार भाजपा के सभी प्रमुख नेता बिहार की बदहाली के लिए लालू यादव को जिम्मेवार ठहराते रहे और नीतीश कुमार के गुणगान में जुटे रहे। यह सिलसिला अभी जारी है। भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी कई बार नीतीश कुमार को लालू यादव के साथ गठबंधन तोड़ने की सलाह दे चुके हैं। सांसद गिरिराज सिंह और भोला सिंह भी नीतीश को एनडीए में आने का परामर्श देते रहे हैं। भाजपा के और भी कई नेता नीतीश के ‘परामर्शी’ में शामिल हैं। आज भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय ने भी नीतीश कुमार को महागठबंधन से अलग होने की सलाह दे डाली।
महागठबंधन न रार, न दरार
दरअसल बिहार भाजपा और प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय का पूरा कुनबा मान चुका है कि महागठबंधन कामय रहा तो लोकसभा चुनाव में सूपड़ा साफ होने की आशंका प्रबल है। यही कारण है कि भाजपा लालू यादव को ‘रावण’ बताकर नीतीश कुमार के ‘रामराज्य’ में अपने लिए भी ‘सत्ता की कुटिया’ में ‘आसन’ पक्का करना चाहती है। भाजपा अब लालू यादव व नीतीश कुमार के बीच खाई पैदा कर अपने लिए सत्ता की राह बनाने की कोशिश कर रही है। लेकिन नीतीश को भी पता है कि पिछले चार वर्षों में देश का राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल गया है। भाजपा अब नीतीश की सत्ता के लिए कुछ दिनों का ‘बेगार’ बन सकती है, पर स्थायी ‘कहार’ नहीं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लालू यादव के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। और फिलहाल महागठबंधन में रार या दरार की कोई आशंका नजर नहीं आ रही है।