आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत चार दिनों की बिहार यात्रा पर हैं। बिहार यात्रा का घोषित मकसद सामाजिक समरसा को बढ़ावा देना हो सकता है। केंद्र में सत्तारूढ़ दल भाजपा की वैचारिक धारा का केंद्र नागपुर है और आरएसएस का मुख्यालय भी नागपुर में ही है। भाजपाई विचारधारा की वैचारिक ‘गंगोत्री’ नागपुर का संघ मुख्यालय है। भाजपा का राजनीतिक एजेंडा भी संघ मुख्यालय तय करता है। एक समय सीएम नीतीश कुमार ने ‘संघमुक्त भारत’ का नारा दिया था। अब आरएसएस ‘नीतीशमुक्त बिहार’ का अभियान चला रहा है। भाजपा के पिछले साल सत्ता में आने के बाद संघ का अभियान तेज हो गया है और संघ प्रमुख का बिहार दौरा भी बढ़ गया है।
वीरेंद्र यादव
नीतीश कुमार ने अपनी राजनीतिक जमीन का विस्तार ‘गैरयादव पिछड़ा’ की गोलबंदी के आधार पर की थी। शरद यादव जैसे नेता नीतीश के लिए मुखौटा भर थे, जिसे अब नीतीश ने उतार फेंका है। सवर्ण वोटरों ने नीतीश पर कभी भरोसा नहीं किया। बनिया भी उनको अपना नहीं मानते हैं। नीतीश ने तेली को पिछड़ा से अतिपिछड़ा बना दिया, लेकिन उस जाति ने भी नीतीश को वोट नहीं दिया। नीतीश की राजनीति का आधार ही यादव विरोध था। मुसलमानों का एक तबका नीतीश के साथ था, लेकिन दुबारा भाजपा के साथ सरकार बनाने के बाद मुसलमानों का विश्वास नीतीश ने खोया है। जदयू के अल्पसंख्यक सम्मेलन में भीड़ नहीं जुट रही है। न राजधानी के एसकेएम में और न जिला मुख्यालयों में। अब ले-देकर गैरबनिया अतिपिछड़ा ही नीतीश के साथ हैं। अनुसूचित जातियों पर कोई भी पार्टी अपना होने का दावा नहीं करती है।
पिछले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने खुद को अतिपिछड़ा होने का ‘बाजार गरमाया’ था और इसका लाभ भी मिला था। लेकिन 2019 के चुनाव में अतिपिछड़ा का मुद्दा भोथर हो गया है। अब कोई सान भी नहीं चढ़ाना चाहता है। आरएसएस ने नीतीश कुमार की राजनीतिक ‘संजीवनी’ को समझ लिया है।
संघ मानता है कि अतिपिछड़ों को भाजपा से जोड़ लिया जाये तो ‘नीतीश मुक्त बिहार’ का सपना साकार हो सकता है। इसलिए संघ प्रमुख हिंदुत्व के नाम पर अतिपिछड़ों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। बिहार का दौरा इसी मकसद को पूरा करने के लिए है। वे हिंदुत्व की आंच को भभका कर रखना चाहते हैं, ताकि अतिपिछड़ों और दलितों को भाजपा के साथ जोड़ा जा सके।
दरअसल नीतीश ने अतिपिछड़ा के नाम पर गैरबनिया अतिपिछड़ों को अपनी राजनीति का आधार बनाया है। इसको एक मजबूत पहचान दी है। संघ प्रमुख उसी ‘घास’ पर डाका डालकर नीतीश को ‘चाराविहीन’ कर देना चाहते हैं। बिहार की उनकी यात्रा लालू यादव के राजनीतिक सफाये के बजाये नीतीश के राजनीतिक सफाये की राजनीति का हिस्सा है, ताकि बिहार में भाजपा की सत्ता के लिए बैसाखी का दौर खत्म हो सके।