बाबू वीरकुंवर सिंह विजयोत्सव के तीन दिवसीय आयोजन के अंतिम दिन आज बापू सभागार में भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कला, संस्कृति और युवा विभाग द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम भाजपा के खिलाफ जदयू का ‘शक्ति प्रदर्शन’ साबित हुआ। कार्यक्रम में भीड़ जुटाने के लिए जदयू ने अपने सभी राजपूत नेताओं को झोंक दिया था। कार्यक्रम की सफलता का ‘ठेका’ उद्योग मंत्री जयकुमार सिंह को सौंपा गया था।
वीरेंद्र यादव
पटना में ही सरकारी विजयोत्सव के शुरू होने यानी 23 अप्रैल के एक दिन पहले 22 अप्रैल को ही भाजपा ने विजयोत्सव मनाया था। भाजपा ने भी वीरकुंवर सिंह विजयोत्सव के लिए राजपूत नेताओं को झोंक दिया था। विजयोत्सव के लिए भाजपा और जदयू नेताओं में भीड़ जुटाने के लिए होड़ मची हुई थी। इसका असर दोनों कार्यक्रमों में दिखा। बापू सभागार में आयोजित विजयोत्सव के समापन कार्यक्रम में काफी भीड़ रही। सभागार में प्रवेश करने वाला हर जत्था नीतीश कुमार का ‘जयकारा’ कर रहा था। इस जयकारा में कई बार भाजपा कोटे के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ‘खो’ जा रहे थे।
किसी भी सरकारी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव चंचल कुमार ‘चर्चित’ नाम हो गये हैं। मुख्यमंत्री संबोधन में उनका नाम लेना नहीं भूलते हैं। विजयोत्सव के समापन समारोह में अपने संबोधन में मुख्यमंत्री ने जिन नेताओं का नाम लिया है, उनमें सुशील मोदी और संजय गांधी को छोड़कर सभी नेता राजपूत जाति के ही थे। इनमें वर्तमान से लेकर भूतपूर्व तक के विधायक व विधान पार्षद शामिल थे।
नीति आयोग के सीईओ ने देश के पिछड़ापन के लिए बिहार समेत कई राज्यों को जिम्मेवार माना था। इसका जबाव भी सुशील मोदी ने वीरकुंवर सिंह की लड़ाई से जोड़कर दिया। उन्होंने कहा कि वीरकुंवर सिंह की लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने सरकारी नौकरी और सेना में बिहारवासियों की बहाली कम कर दी थी। उसका असर डेढ़ सौ वर्ष बाद अब भी दिख रहा है। बिहार वर्षों से प्रशासनिक भेदभाव का शिकार रहा है। इसी का खामियाजा बिहार भुगत रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने संबोधन में विकास योजनाओं को वीरकुंवर सिंह और महात्मा गांधी से जोड़कर व्याख्या की। महिला शिक्षा को भी इसी परिप्रेक्ष्य में देखा।
भाजपा और जदयू के अलग-अलग शक्ति प्रदर्शन से साबित हो गया कि राजनीतिक अखाड़े में दोनों दल राजपूत जाति को अपने पक्ष में जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। दोनों दलों का गठबंधन कितना स्थायी है, यह उनको ही पता नहीं है। इसलिए एक-एक वोट का गणित अलग-अलग लगाया जा रहा है। वैसे में वीरकुंवर विजयोत्सव वोटों पर दावेदारी का मजबूत आधार था और इसका दोनों ने जमकर इस्तेमाल किया। कौन कितने पानी में है, यह बाद में पता चलेगा।
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तस्वीर- सीनियर फोटो जर्नलिस्ट सोनू किशन की