लालू परिवार पर सीबीआई रेड के चौथे दिन जद यू ने ऐसा तीर चला दिया है जिससे न तो उत्साहित मीडिया की जिज्ञासा शांत हुई और न ही भाजपा का उतावलापन. लेकिन इससे इतना जरूर आभास हुआ है कि जद यू ने राजद को एक खास संदेश दे दिया है.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
जद यू ने बड़े नपे और सधे हुए अंदाज में इस मामले में ऐसा वक्तव्य दिया है जिससे यही लगता है कि मीडिया, विपक्षी पार्टियां और आम जन अपने-अपने ढ़ंग से अर्थ लगाते रहें.
घंटों चली बैठक के बाद जद यू प्रवक्ता नीरज कुमार पत्रकारों के सामने आये और अपनी बात रखी उन्होंने कहा कि “जदयू गठबंधन धर्म पालन करना जानती है”. उन्होंने यह भी कहा कि “जिन पर( तेजस्वी) आरोप लगे हैं वे जनता की अदालत में इस बारे में विवरण दें”.
नीरज के इस बयान का अर्थ अलग-अलग तरह से लगाये जायेंगे. एक यह कि जद यू गबंधन धर्म को महत्व देता है और संकट के इस समय में गठबंधन को खतरे में डालना नहीं चाहेगा. साथ ही जब जद यू प्रवक्ता यह कह रहे होते हैं कि जिन पर( तेजस्वी) पर आरोप लगे हैं वह (अदालत नहीं) जनता की अदालत में इस बारे में विवरण दें. जद यू की यह टिप्पणी यह नहीं कहती कि मुख्यमंत्री तेजस्वी से फिलहाल इस्तीफा देने को कहने वाले हैं. हां अगर वह अपरोक्ष दबाव में इस्तीफा दें लें तो इससे नीतीश कुमार का काम खुद ब खुद आसान हो जायेगा. लेकिन पत्रकारों के साथ बातचीत में जब जद यू प्रवक्ता तेज स्वर में यह कहते हैं कि उनकी उनकी सरकार ने जीतन राम मांझी से चंद घंटों में इस्तीफा ले लिया था तो वह एक तरह से यह कह रहे थे कि जीतन राम गठबंधन के अन्य दल के मंत्री नहीं थे बल्कि जद यू कोटे के मंत्री थे. लिहाजा भ्रष्टाचार के आरोप पर राजद को चाहिए कि वह तेजस्वी को मंत्रिमंडल से हटने को कहे, जद यू इसमें फिलहाल पहल नहीं करेगा.
अब जद यू के इस बयान के बरअक्स कुछ अन्य पहलुओं पर भी गौर करने की जरूरत है. जद यू की बैठक शुरू होने से पहले राजद के एक नेता ने दबाव बनाने के लिए कुछ पत्रकारों को कहा कि अब जनता के सामने जाना है. उनके इस बयान का अर्थ यह है कि अगर नीतीश सरकार ने तेजस्वी को हटाया तो सरकार अस्थिर हो जायेगी. मतलब साफ है कि जद यू और राजद एक दूसरे को तोलने में लगे हैं. यह सिलसिला कुछ और रोज चलेगा.
आंकलन
कुल मिला कर स्थितियां उलझी हुई तो हैं पर राजद-जद यू के बीच शह-मात का खेल भी चल रहा है. लेकिन आखिरकार क्या नीतीश कुमार ऐसी हालत में राजद से अलग होने का जोखिम लेंगे? जो नीतीश कह राजग से अलग होने के बाद संघमुक्त भारत का नारा बुलंद करते हुए कह चुके हैं कि वहां लौटने का सवाल ही नहीं. इतना ही नहीं नीतीश यह भी जानते हैं कि भाजपा गठबंधन अब उनके लिए माकूल नहीं. क्योंकि अब भाजपा उन्हें अगली बार यानी 2020 में मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने का वचन देने के मूड में शायद ही है.
ऐसे में नीतीश के सामने तेजस्वी के पक्ष में यह तर्क हो सकता है कि जिस मामले में उन पर आरोप लगे हैं और जब का यह मामला है तब वह माइनर( 18 से कम उम्र के) थे. लिहाजा कथित तौर पर जिस जमीन के घोटाले से उनका नाम जोड़ा जा रहा है, उसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी.
जहां तक महज आरोप के आधार पर इस्तीफा लेने की बात है तो ऐसे कई उदाहरण हैं जब नीतीश ने भाजपा के साथ रहते हुए भाजपा कोटे के मंत्री प्रेम कुमार पर कुछ मामले में लगे आरोप पर इस्तीफा नहीं लिया था. खुद सुनील कुमार पिंटू जो जद यू कोटे के मंत्री थे, उन पर लगे आरोपों पर भी इस्तीफा नहीं लिया गया था. हमारे सामने तो ऐसे उदाहरण भी हैं जब गुजरात के तत्कालीन मोदी सरकार के मंत्री बाबू भाई बखोरिया को तीन साल की जल की सजा हुई थी तो भी इस्तीफा नहीं लिया गया. और हाल का मामला यह है कि केंद्रीय मंत्री उमा भारती, जिन पर बाबरी मस्जिद विध्वंस का आरोप अदालत ने तय कर दिया है तो इस्तीफा नहीं लिया गया. इसी तरह एक राज्य के राजपाल कल्याण सिंह पर भी आरोप तय है पर गरिमामय पद पर होने के कारण उन पर फिलहाल मुकदमा नहीं चलेगा.
मौजूद सरकार के सामने जवाब देने के लिए अनेक तर्क हैं. पर बात तर्कों से आगे की है. ऐसा भी संभव है कि राजद और जद यू मौजूदा मुद्दे के बहाने 2019 के लोकसभा चुनाव और 2020 के विधान सभा चुनाव के बाद की भूमिका की तलाश कर रहे हैं. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि राजद 2020 तक नीतीश कुमार के सीएम रहने की गारंटी तो देता है पर उसके बाद की स्थिति पर वह चुप है.
इस लिए जद यू ने लालू परिवार पर सीबीआई रेड के बाद के हालात पर कुछ दिन और वेट ऐंड वाच की नीति अपनाई है. अब आगे देखना होगा कि क्या होता है.