मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज ‘विश्व रिकार्ड’ कायम किया है। वैसे वे पहले भी विश्व रिकार्ड बनाते रहे हैं। शराबबंदी के खिलाफ मानव श्रृंखला बनाकर उन्होंने 2017 के जनवरी महीने में विश्व रिकार्ड बनाया था। आज मुख्यमंत्री के रूप में तीसरी पर विधान परिषद चुनाव के लिए नामांकन करके नीतीश कुमार ने विश्व रिकार्ड बनाया है। इसको विश्व रिकार्ड के बजाये ‘राष्ट्रीय रिकार्ड’ कहें तो ज्यादा न्यायोचित होगा।
वीरेंद्र यादव
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले 12 वर्षों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं। इस दरम्यान नीतीश ने जीतनराम मांझी को ‘प्रसाद’ के रूप में 9 महीने के लिए मुख्यमंत्री का पद दिया था। लेकिन कुर्सी पर ‘खड़ांऊ’ के बदले श्री मांझी खुद बैठने का प्रयास करने लगे तो उन्हें बेदखल कर दिया गया। इन 12 वर्षों के कार्यकाल में नीतीश कुमार ने 2010 और 2015 का विधान सभा चुनाव भी देखा है। अभूतपूर्व विजय भी हासिल की। 2010 में भाजपा की सवारी की तो 2015 में राजद-कांग्रेस की सवारी की। लेकिन नीतीश कुमार दोनों विधान सभा चुनाव में खुद चुनाव मैदान में उतरने का हिम्मत नहीं जुटा पाये। पिछले साढ़े 12 वर्षों में ‘विकास की गंगा’ बहाने का दावा करने वाले नीतीश कुमार अपने लिए ‘विकास का एक भी टापू’ नहीं बना पाये, जिस पर खड़ा होकर विधान सभा का चुनाव लड़ सकें।
भारतीय संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, विधान मंडल के दोनों सदनों में से किसी भी सदन का सदस्य मुख्यमंत्री या मंत्रिमंडल का सदस्य हो सकता है। इसलिए विधान परिषद सदस्य के रूप में सीएम बनना संविधानसंगत है। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद लोकतंत्र में ‘लोक-लाज’ की बात करते रहे हैं। लेकिन विधान सभा चुनाव लड़ने के बजाये विधान परिषद से तीसरी बार चुनाव लड़ कर कुर्सी पर काबिज रहना, किस ‘लोक-लाज’ के दायरे में आता है। 10-12 वर्षों में उन्होंने एक भी विधान सभा क्षेत्र की जनता का भरोसा हासिल नहीं कर पाये, जो उन्हें विधान सभा भेज सके।
बिहार में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब कोई व्यक्ति विधान परिषद सदस्य के रूप में सीएम पद पर आसीन हुए, लेकिन अगले ही विधान सभा चुनाव में जीत कर जनता का विश्वास हासिल किया। 1968 में बीपी मंडल मुख्यमंत्री बनने से पहले विधान परिषद के सदस्य बने थे। इसके बाद मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। कर्पूरी ठाकुर ने 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद विधान परिषद के बजाये विधान सभा का चुनाव जीतकर आये और कुर्सी का मान बढ़ाया। लालू यादव व राबड़ी देवी भी मुख्यमंत्री बनने के बाद विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए, लेकिन अगले ही विधान सभा चुनाव में जनता का विश्वास हासिल किया और विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए।
आज हम भी नीतीश कुमार के ‘तीसरे नामांकन’ के राष्ट्रीय रिकार्ड का गवाह बनना चाहते थे, लेकिन डाक्टर के फेर ऐसे उलझे कि समय पर विधान सभा पहुंचना संभव नहीं हो सका। एक मुख्यमंत्री का विधान सभा चुनाव लड़ने के बजाये बार-बार विधान परिषद का सदस्य बनकर पर सत्ता पर बने रहने का इससे बेहतर उदाहरण भारत में कहीं मिल सकता है। नीतीश कुमार के विधान परिषद में तीसरी बार नामांकन का ऐतिहासिक क्षण हम नहीं देख पाये, इसकी पीड़ा लंबे समय तक महसूस होती रहेगी।