जदयू के चार विधायकों ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, नीरज कुमार बबलू, रवींद्र राय और राहुल शर्मा की विधान सभा से बर्खास्तगी का फैसला पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का था, जिसे स्पीकर उदय नारायण चौधरी ने सिर्फ पढ़कर विधायकों को सुनाया था। सूत्रों की माने तो कथित रूप से स्पीकर का फैसला की फाइनल प्रिंट की कॉपी नीतीश कुमार के सरकारी आवास सात, सर्कुलर रोड के कार्यालय से निकाली गयी थी।
वीरेंद्र यादव, बिहार ब्यूरो प्रमुख
पिछले दिनों पटना पहुंचे जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव को चार विधायकों की सदस्यता समाप्त करने के संबंध में भनक मिल गयी थी। बर्खास्तगी के निर्णय का विरोध उन्होंने भी किया था, लेकिन नीतीश कुमार ने उनकी भी नहीं सुनी। माना यह भी जा रहा है कि राज्यसभा के उपचुनाव के दौरान बागी विधायकों की कार्रवाई की जानकारी शरद यादव को थी। निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन के पहले भी बागी विधायकों ने शरद यादव से बातचीत की थी। इस दौरान शरद ने बागियों को संकेत दिया था कि उनकी (शरद) सीट को छोड़कर अपनी कार्रवाई के लिए स्वतंत्र हो। इसके बाद ही बागी खुल्लेआम मैदान में आ गए और शरद की सीट को छोड़ कर दो अन्य सीटों के लिए निर्दलीय उम्मीदवारों के पक्ष में आ गए। उपचुनाव में जदयू के 18 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग करके निर्दलीय उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान किया था।
सत्ता व संगठन के नियंता नीतीश
उपचुनाव में जदयू के दोनों उम्मीदवर गुलाम रसूल व पवन वर्मा (दोनों यूपी के) चुनाव जीत गए थे, लेकिन नीतीश कुमार राजनीतिक लड़ाई हार चुके थे। नीतीश ने लालू यादव के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। इस टीस से नीतीश आज तक नहीं उबर पाए हैं। चारों विधायकों की बर्खास्तगी भी उनकी जिद का परिणाम है। मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी सदस्यता समाप्त करने जैसी कार्रवाई की पक्ष में नहीं थे। लेकिन नीतीश के आगे हर कोई विवश था। सूत्रों की माने तो इस मामले में स्पीकर के भी हाथ बंधे थे। वह नीतीश कुमार के खिलाफ नहीं जा सकते थे। इस कारण उन्होंने नीतीश के फैसले को पढ़ना ही उचित समझा। इस बर्खास्तगी से यह साबित हो गया कि जदयू के सत्ता और संगठन में नीतीश कुमार के अलावा सभी नाम छद्म और भुलावा हैं।