आठ नवंबर को महागठबंधन को बहुमत मिलने के बाद से पूरा बिहार इंतजार कर रहा है कि मंत्री कौन-कौन बन रहे हैं। सभी विधायकों ने शपथ ग्रहण के लिए झकास सफेद कुर्ता और पैजामे का आदेश दे दिया है। कुछ लोग तो शपथ ग्रहण के ‘ड्रेस रिहर्सल’ भी कर रहे हैं। (ड्रामा के कलाकार मंचन के एक दिन पहले भूमिका के अनुकूल ड्रेस पहनकर रिहर्सल करते हैं, जिसे ड्रेस रिहर्सल कहा जाता है।) क्या महिला, क्या पुरुष सबको सात सर्कुलर रोड से फोन आने का इंतजार है। लेकिन सात सर्कुलर रोड 10 सर्कुलर रोड और सदाकत आश्रम से लिस्ट आने इंतजार कर रहा है। और लिस्ट को अंतिम रूप 20 नवंबर को 10 बजे से पहले देना संभव नहीं लग रहा है।
नौकरशाही ब्यूरो
पटना के राजनीतिक गलियारों में मंत्री बनने की योग्यता और प्राथमिकता तय की जा रही है। जाति के हिसाब से, पार्टी के हिसाब से, क्षेत्र के हिसाब, गंगा के इस पार या उस पार के हिसाब से समीकरण बनाए जा रहे हैं। इन पैरामीटरों पर विधायकों की योग्यता आंकी जा रही है। सभी विधायक खुद को मंत्री का सबसे योग्य उम्मीदवार बता रहे हैं। समीकरण गढ़वा रहे हैं। एक विलेन टाइप के विधायक खुद को कला-संस्कृति मंत्री बता रहे हैं तो एकाध ठेकेदार टाइप विधायक खुद को सड़क निमार्ण मंत्री बता रहे हैं। हद तो हो गयी कि सरकार बनवाने और नीतीश को जीतवाने का दावा करने वाले ठेकेदार टाइप के मैनेजर खुद को नीतीश से बड़ा मैनेजर बता रहे हैं। अब खुद को मंत्री और राज्य सभा के सबसे बड़े दावेदार बता रहे हैं। बातचीत में विधायक कहते हैं कि उनकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, लेकिन जिम्मेवारी मिलने पर ‘हलोर’ लेंगे।
जनादेश का अपमान नहीं हो
मंत्री बनाना सीएम नीतीश का एकाधिकार है। बिहार के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है कि जनता का विश्वास। जनता ने बड़ी अपेक्षाओं के साथ लालू यादव, नीतीश कुमार और कांग्रेस पर संयुक्त रूप से विश्वास व्यक्त किया है। उस विश्वास का अपमान नहीं होना चाहिए। जनता की उम्मीदों पर कुठाराघात नहीं होना चाहिए। सत्ता के लिए समझौते करने पड़ते हैं। इसे राजनीतिक मजबूरी कह सकते हैं। लेकिन जिस दिन समझौता ही ‘सत्ता का चरित्र’ बन जाएगा, वह दिन बिहार के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा।